मोदी सरकार की तानाशाही! ‘आधार’ पर सुनाई में सुप्रीम कोर्ट से कहा- हम लोगों के शरीर के मालिक हैं

आज सुप्रीम कोर्ट में “आधार” के एक और मामले की सुनवाई थी (पुराना मामला तो ‘न्यायाधीशों’ ने जिंदा दफ़ना दिया है, इसलिये कुछ ‘पागल’ लोग एक नया मामला लाये थे)।

पिछले सप्ताह दो बड़े वकीलों (दातार और दीवान) ने आधार के ख़िलाफ़ बुर्जुआ जनतंत्र, स्वतंत्रता और मानव अधिकारों के सिद्धांतों के हिसाब से जबर्दस्त, प्रभावशाली तर्क दिए थे।

सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल रोहतगी ने जवाब दिया| मुख्य बातें –

1. किसी व्यक्ति का अपने शरीर पर भी पूर्ण अधिकार नहीं है। सरकार हमारे अपने शरीर पर अधिकार पर भी रोक लगा सकती है।

2. रूसो (जी हाँ, सही पढ़ा, रूसो!) के सोशल कॉन्ट्रैक्ट की नई व्याख्या दी गई- समाज एक कम्पनी है जिसके हम मेंबर (मज़दूर?) हैं! राजसत्ता तो पूँजी मालिक अर्थात शेयरहोल्डर ही हुई फिर! समझिये- पूँजी मालिक की मर्जी ही अंतिम है, श्रमिक को तो मजदूरी मिल जाये वही बहुत है।

3. राजसत्ता को पूर्ण अधिकार है कि वह चाहे तो व्यक्ति का कुछ भी करे, चाहे तो उसकी जान ले ले (यही कहा गया, मेरा निकाला अर्थ नहीं हैं!)

4. अब तक हम आपको मूर्ख बना रहे थे आधार को स्वैच्छिक बताकर, आज बता देते हैं कि यह अनिवार्य है, बचने का कोई मौका नहीं दिया जायेगा।

5. संविधान के मूल अधिकारों वाले अनुच्छेद 19 (1) (g) का हवाला दिया गया था। सरकार की ओर से रोहतगी ने कहा कि इस अनुच्छेद का तो ज़िक्र भी मैंने बहुत दिन बाद सुना है। अब भी लोग इसकी बात करते हैं क्या!

रोज-रोज बड़ी-बड़ी वीरताभरी टिप्पणियाँ करने वाले न्यायाधीश लोग आज इस सरकारी साफ़गोई पर ज़्यादातर चुप ही रहे!

तो जनाब, आप दम भरते रहिये जनता के सवैंधानिक अधिकारों, स्वतंत्रताओं और परम्पराओं का, सत्ताधारी वर्ग अब इसे प्रहसन से ज़्यादा कोई अहमियत नहीं देता।

वे अब इस नाटक का पटाक्षेप कर मेहनतकश लोगों पर नग्न पूँजीवादी शोषण और दमन का फ़ासीवादी चक्र चलाने के लिये तैयार हैं।

  • मुकेश त्यागी