लौह पुरुष सरदार पटेल की 142वीं जयंती के दिन दिल्ली में मंगलवार को आयोजित ‘रन फॉर यूनिटी’ को सफल बनाने के लिए सरकारी अमले ने पूरी ताकत झोंक दी. केंद्र सरकार की ओर से कार्यक्रम का प्रचार प्रसार पहले से ही खूब किया गया था. इसी वजह से ‘एकता दिवस’ पर ‘रन फॉर यूनिटी’ ‘रन फॉर यूनिटी’‘रन फॉर यूनिटी’का हिस्सा बनने के लिए युवा वर्ग में भी खासा जोश दिखाई दिया. लेकिन ये आयोजन कुछ छात्राओं के लिए परेशानी का सबब बन गया जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘श्रेष्ठ भारत’ का हिस्सा बनने आई थीं.
मंगलवार को 14 वर्षीय स्मृति (बदला हुआ नाम) अपनी कब्बडी टीम के साथ सुबह ही इंडिया गेट पहुंच गई. हालांकि उनके लिए पास ही स्थित ध्यानचंद स्टेडियम में प्रैक्टिस के लिए आऩा रोज का नियम है लेकिन 31 अक्टूबर की तारीख के लिए उनके खास मायने थे. एक तो देश के पहले गृह मंत्री सरदार पटेल की जयंती पर एकजुटता दिखाने के आयोजन में हिस्सा लेने की उत्सुकता, साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से रू-ब-रू होने की खुशी. बच्चियां उमंग से भरी थीं कि प्रधानमंत्री के ‘श्रेष्ठ भारत’को लेकर उन्हें और जानने को मिलेगा.
आखिर वो वक्त भी आ गया. एक तरफ पीएम मोदी मंच पर खड़े सबका अभिनंदन कर रहे थे और दूसरी तरफ लोगों का हुजूम सामने से गुज़र रहा था. माइक पर नॉन स्टॉप कमेंट्री में प्रधानमंत्री के लिए ‘हॄदय सम्राट’, ‘सबके चहेते’ जैसे शब्दों के साथ ‘समा बंध गया’ जैसे जुमलों का भी इस्तेमाल किया जा रहा था . पीएम हाथ हिलाते हुए मुस्कुराते और लोग दोनों हाथ उठा कर हर्ष व्यक्त करते. हर कोई अपने मोबाइल के कैमरे पर इन क्षणों को कैद करता दिखा. सब कुछ था, लेकिन पीएम से रू-ब-रू होने की उम्मीद दिल में लेकर आईं स्मृति और उसकी टीम की अन्य साथी भीड़ में कहीं गुम थी.
‘एकता दिवस’ के इस सारे तामझाम के पीछे एक ऐसा सच छुप कर रह गया जो किसी को भी दुखी कर देगा. स्मृति और उसकी सहेलियां पूरे आयोजन के दौरान धक्कामुक्की का ही सामना करती रहीं. बात यही तक रुक जाती तो गनीमत रहती. सुनिए देश की एक बेटी की आपबीती उसी की जुबानी. स्मृति और उसकी टीम से जब पूछा गया कि वे सब आयोजन के दौरान कहां थीं, तो स्मृति भावुक हो उठी. साथ ही बोली- ‘ हमें बहुत निराशा हुई, यहां लड़के इतनी हूटिंग कर रहे थे कि हम बता नहीं सकते. बैठे बैठे कभी हमारे ऊपर पानी की बोतल फेक रहे थे तो कभी कमेंट कस रहे थे.’
इसी बीच टीम की सबसे छोटी सदस्य दीया (बदला हुआ नाम) बोली- ‘हम मैदान में बैठे थे, वहां लड़के बदतमीज़ी कर रहे थे. कभी हमारे बाल खींच रहे थे, तो कभी सरदार पटेल की तस्वीर छपे पर्चों को फाड़ हवाई जहाज बना हम पर फेक रहे थे. वहां मौजूद गार्ड भी हमसे इतनी ध्क्का मुक्की कर रहे थे हम किससे कहते? हमें बहुत खराब लगा.’
स्मृति और दीया की ये शिकायत उस जगह पर हो रहे बर्ताव को लेकर थी, जिस जगह पर देश का टॉप सरकारी अमला कार्यक्रम को सफल बनाने में जुटा था. एकता के उत्सव में भागीदारी के लिए ये बेटियां घर से बड़े उत्साह के साथ निकलीं थी लेकिन वहां का हाल देख सिहर कर रह गईं. सपना (बदला हुआ नाम) का तो सपना ही टूट गया. सपना ने बताया,‘औरों ने मना किया तो भी हम दौड़ने निकले थे कि एकता दिवस का हिस्सा बनेंगे. पर वहां इतनी गंदगी थी और लोग ज़बरदस्ती हाथ लगा रहे थे, मुझे ही नही मेरी दोस्तों के साथ भी ये हुआ इसलिए हमें दौड़ छोड़ कर वापस आना पड़ा.’
‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ का नारा तो बहुत जोरशोर से दिया जाता है, लेकिन मंगलवार को इन बच्चियों को जो भुगतना पड़ा, क्या वो ‘श्रेष्ठ भारत’की कल्पना से किसी तरह भी मेल खाता है.
सवाल पूरे समाज के लिए भी है. जब इतने हाईप्रोफाइल कार्यक्रम में बच्चियों जो मन में सोच कर आई थीं, वो पूरा होना तो दूर, बदसलूकी के चलते सहना बहुत कुछ पड़ गया. अब सोचिए, दूरदराज के इलाकों में, कम रोशनी वाली जगहों पर, घर से अकेले निकलना बच्चियों के लिए कितना सुरक्षित होता होगा? जब तक पूरी सुरक्षा का आश्वासन ना मिले ये बच्चियां सुनहरी उम्मीदों के खुले आसमान पर उड़ान भरें भी तो भरें कैसे?
‘श्रेष्ठ भारत’ की बुलंद तस्वीर तभी साकार हो सकती है जब इन बच्चियों को मंच के दायरे से दूर, कैमरे के लैंसों से परे, कागजी लकीरों को पार कर स्वतंत्र और सुरक्षित कैनवास मिले.