मोरक्को के एक गांव की मस्जिद जो फैला रही है रोशनी

पश्चिमी अफ़्रीकी देश मोरक्को का एक गांव इन दिनों पूरी दुनिया में शोहरत बटोर रहा है. इस गांव का नाम है तदममेत. ये गांव मोरक्को के मशहूर शहर मराकेश से बस एक घंटे की दूरी पर है. इस गांव की आबादी है 400.

एटलस पर्वतमाला से घिरे इस गांव में पहली नज़र में कुछ ख़ास नहीं दिखता. पास का क़रीबी गांव भी यहां से चालीस किलोमीटर दूर है. इस गांव में जौ, आलू और सेब की खेती होती है. गांव में गिने-चुने लोगों के पास कारें हैं. लोगों के हाथ में स्मार्टफ़ोन भी नहीं दिखते. तदममेत में इंटरनेट कनेक्शन भी नहीं है. यहां बिजली भी नहीं है. सर्दियों की रातें बिना बिजली के काटना इस गांव के लोगों पर बहुत भारी पड़ता है.

गांव में एक नई मस्जिद बनी है. ये मस्जिद गांव के लोगों के लिए ख़ुशियों का पैग़ाम लेकर आई है. ये मस्जिद अब गांव की बिजली की ज़रूरतें पूरी करती है. इस मस्जिद की छत पर सोलर पैनल लगाए गए हैं. सूरज की रौशनी से बनने वाली बिजली से सिर्फ़ मस्जिद ही रौशन नहीं होती. पूरे गांव में इससे उजियारा होता है.

तदममेत सूरज की बिजली से चलने वाला मोरक्को का पहला गांव है. मस्जिद में लगे फोटोवोल्ट सोलर पैनल से इतनी बिजली पैदा होती है कि गांव के सभी लोगों की ज़रूरतें पूरी हो जाती हैं.

मस्जिद में सोलर पैनल लगाने का ये मिशन शुरू किया है जर्मनी की कंपनी कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंटरनेशनल को-ऑपरेशन ने.

तदममेत की मस्जिद मोरक्को के लिए ऐसी मिसाल बनी है कि अब देश में हज़ार से ज़्यादा मस्जिदों में सोलर पैनल लगाए जा रहे हैं. असल में मोरक्को की सरकार ने तीन साल पहले ग्रीन मस्जिद प्रोजेक्ट शुरू किया है. इस प्रोजेक्ट के तहत सार्वजनिक इमारतों में बिजली की खपत घटाना है.

प्रोजेक्ट के तहत देश भर की 51 हज़ार मस्जिदों में बिजली की खपत कम की जानी है.

मस्जिदों में रौशनी के लिए इस्तेमाल होने वाली बिजली की मांग बहुत ज़्यादा है. इसके अलावा वहां लाउडस्पीकर चलाने और साफ-सफाई में भी काफ़ी बिजली इस्तेमाल होती है.

प्रोजेक्ट से जुड़ी जर्मन कंपनी के यान क्रिस्टॉफ़ कुन्ज कहते हैं कि मस्जिदों की इमारतें पेचीदा नहीं होतीं. इनमें सोलर पैनल लगाना आसान होता है. इसलिए सबसे पहले मस्जिदों में ही ये काम शुरू किया गया है.

मोरक्को एक मुस्लिम देश है. यहां मस्जिदों का समाज में बहुत अहम रोल है. तदममेत में मस्जिद ही इकलौती सार्वजनिक इमारत है. यहां पर नमाज़ पढ़ने के अलावा भी कई काम होते हैं. जैसे कि गांव के स्कूल की इमारत कमज़ोर हो गई तो बच्चों को मस्जिद के सहन में पढ़ाया जाने लगा. स्कूल में बिजली भी नहीं थी. अब मस्जिद की बिजली से बच्चों को भी फ़ायदा हो रहा है.

इस मस्जिद के लिए ज़मीन गांव की महिला ताओली कबीरा के परिवार ने दी थी. कबीरा कहती हैं कि पहले लोग चिराग कि रौशनी में नमाज़ पढ़ते थे. अक्सर तेज़ हवाओं की वजह से दीए बुझ जाते थे. तो, लोगों को अंधेरे में इबादत करनी पड़ती थी. अब वक़्त बदल गया है. लोग लाइट में नमाज़ पढ़ सकते हैं.

मस्जिद में पैदा होने वाली बिजली से गांव में स्ट्रीट लाइट भी जलती हैं. यही नहीं मस्जिद के हम्माम में गीज़र भी लगा है. जहां सर्दियों के दिन में लोग गर्म पानी से नहा-धो लेते हैं.

सोलर पैनल से इतनी बिजली पैदा होती है कि इससे पानी निकालने की मशीन भी चल जाती है. इससे लोगों को फ़सल सींचने के लिए पानी भी मिल जाता है. पहले मोरक्को में अक्सर सूखा पड़ता था. मगर अब तदममेत गांव के लोगों की फसल पानी की कमी से बर्बाद नहीं होती.

बहुत से गांव अब तदममेत की तरह सोलर पैनल लगाकर अपनी ज़रूरत भर की बिजली पैदा करना चाहते हैं. मगर अभी भी सूरज से बिजली बनाने वाले उपकरण काफ़ी महंगे आते हैं. हालांकि, सोलर पैनल की क़ीमतें काफ़ी गिरी हैं. फिर भी ये आम लोगों की पहुंच से दूर है.

भारत की तरह मोरक्को ने भी पेरिस जलवायु समझौते पर दस्तख़त किए हैं. इसके तहत मोरक्को को साल 2030 तक अपने कार्बन उत्सर्जन में 34 फ़ीसद तक की कटौती करनी है.

मोरक्को अपनी ज़रूरत की 97 फ़ीसद बिजली, तेल, गैस और कोयले से बनाता है. पिछले दस साल में मोरक्को में बिजली की मांग दोगुनी हो गई है. बिजली बनाने की वजह से काफ़ी प्रदूषण भी होता है.

इसी प्रदूषण को घटाने के लिए मोरक्को की सरकार ने देश की मस्जिदों में सोलर पैनल लगाकर बिजली बनाने का अभियान शुरू किया है. इस प्रोजेक्ट की शुरुआत में मराकेश की दो बड़ी मस्जिदों समेत कुल 100 मस्जिदों में सोलर पैनल लगाए जाने हैं. इस काम में जर्मनी की कंपनी भी मोरक्को की मदद कर रही है.

मोरक्को में सूरज की चमकदार रौशनी साल में क़रीब तीन हज़ार घंटे रहती है. इसी का फ़ायदा उठाकर मोरक्को अपनी ज़रूरत की 52 फ़ीसद बिजली सूरज की रौशनी से बनाने में जुट गया है.

इससे मोरक्को को दुनिया की बदलती आबो-हवा के असर से निपटने में भी मदद मिलेगी.

ख़ुद तदममेत गांव के लोगों ने जलवायु परिवर्तन के नुक़सान को झेला है. आज उन्हें अपनी फ़सल सींचने के लिए पानी की किल्लत का सामना करना पड़ रहा है. गांव के लोग कहते हैं कि पहले वो अपनी फ़सलों को हफ़्ते में एक दिन पानी दिया करते थे. मगर, आज महीने में एक बार ही सिंचाई हो पाती है. इससे फसलों की उपज घट गई है.

ग्रीन मस्जिद प्रोजेक्ट का मक़सद लोगों को साफ़-सुथरी बिजली के फ़ायदे समझाना भी है. रेडियो के कार्यक्रमों के ज़रिए लोगों को इसके नफ़ा-नुक़सान समझाए जाते हैं. बताया जाता है कि किस तरह नई तकनीक से उन्हें ही नहीं, आने वाली पीढ़ियों को भी फ़ायदा होगा.

इससे रोज़गार के नए मौक़े पैदा होने की भी उम्मीद है. कामगारों को नई तकनीक के इस्तेमाल का तरीक़ा बताया जाता है. नई इमारतें बनाने में कौन सा तरीक़ा अपनाना फ़ायदेमंद है, ये बात भी लोगों को समझाई जा रही है.

तदममेत गांव के लोगों ने ही मिलकर अपने यहां की मस्जिद बनाई थी. ये उनके लिए यादगार तजुर्बा रहा. क्योंकि नई इमारत ऐसी बनी है, जो क़ुदरत पर कम से कम बुरा असर डाले.

तदममेत गांव के ज़्यादातर मकान पत्थर और कंक्रीट के बने हैं. मगर इलाक़े में पड़ने वाली भयंकर गर्मी से निपटने के लिए मस्जिद को मिट्टी की ईंटों से बनाया गया है. इससे इमारत न ज़्यादा गर्म होती है, और न ही ठंडी.

तदममेत के लोग कहते हैं कि उन्हें अपने गांव पर गर्व है कि उसने दुनिया के सामने एक नई मिसाल क़ायम की है.

 

साभार- शुक्रिया के साथ – बीबीसी हिंदी डॉट कॉम