90 वर्षों से मिस्र में सुन्नीयों को प्रतिनिधित्व करने वाला मुस्लिम ब्रदरहुड की राजनीति पर लगा प्रतिबंध

पिछले 90 वर्षों से मिस्र में राजनीतिक सुन्नी इस्लाम का प्रतिनिधित्व करने वाला सबसे बड़ा समूह को “आतंकवादी” संगठन का लेबल लगने के बाद राजनीति से प्रतिबंधित कर दिया गया है।

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बताते चलें कि मुस्लिम ब्रदरहुड मिस्र का सबसे पुराना और सबसे बडा़ इस्लामी संगठन है. इसे इख्वान अल- मुस्लमीन के नाम से भी जाना जाता है. इसकी स्थापना 1928 में हसन अल-बन्ना ने की थी।

स्थापना के बाद इस संगठन ने पूरे संसार में इस्लामी आंदोलनों को काफी प्रभावित किया और मध्य पूर्व के कई देशों में इसके सदस्य हैं.

शुरुआती दौर में इस आंदोलन का मकसद इस्लाम के नैतिक मूल्यों और अच्छे कामों का प्रचार प्रसार करना था, लेकिन जल्द ही मुस्लिम ब्रदरहुड राजनीति में शामिल हो गया था.

विशेष रुप से मिस्र को ब्रिटेन के औपनिवेशिक निंयत्रण से मुक्ति के अलावा बढ़ते पश्चिमी प्रभाव से निजात दिलाने के लिए मुस्लिम ब्रदरहुड ने काम किया.

मुस्लिम ब्रदरहुड की स्थापना करने वाले हसन अल-बन्ना

मिस्र में यह संगठन अवैध करार दिया जा चुका है लेकिन इस संगठन ने कई दशक तक सत्ता पर काबिज रहे राष्ट्रपति होस्नी मुबारक को बेदखल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. जनांदोलनों की वजह से फरवरी 2011 में होस्नी मुबारक को सत्ता से हटना पड़ा था.

ब्रदरहुड का कहना है कि वो लोकतांत्रिक सिद्धांतो का समर्थन करता है और उसका एक मु्ख्य मकसद है कि देश का शासन इस्लामी कानून यानि शरिया के आधार पर चलाया जाए.

मुस्लिम ब्रदरहुड का सबसे चर्चित नारा है, “इस्लाम ही समाधान है”

भूमिगत हुआ ब्रदरहुड 1954 में
वर्ष 1928 में हसन अल- बन्ना के संगठन बनाने के बाद मुस्लिम ब्रदरहुड की शाखाएं पूरे देश में फैल गईं. गरीबी और भ्रष्टाचार के कारण मिस्र में मुस्लिम ब्रदरहुड के सदस्यों की तादाद लगातार बढ़ती ही चली गई.

अपने जनकार्यों की बदौलत ब्रदरहुड ने अस्पताल, स्कूल और जन कल्याण के संस्थान खोले जिससे उन लोगों को बहुत फायदा हुआ जिन्हें सरकार से कुछ भी नहीं मिल रहा था.

1940 के दशक के आखिरी सालों तक मिस्र में मुस्लिम ब्रदरहुड के सदस्यों की तादाद बढ़कर 20 लाख तक पहुंच गई. साथ ही इस संगठन की विचारधारा पूरे अरब विश्व में फैल गई.

इसी के साथ संगठन के संस्थापक बन्ना ने एक हथियार बंद दस्ते का भी गठन किया जिसका मकसद ब्रिटिश शासन के खिलाफ बमबारी और हत्याओं को अंजाम देना था.

सन 1948 में हसन अल- बन्ना की एक अज्ञात बंदूकधारी ने हत्या कर दी. वर्ष 1948 में मिस्र की सरकार ने ब्रितानी लोगों पर हमले और यहूदियों के हितों को देखते हुए इस संगठन को भंग कर दिया.

वर्ष 1952 में सैन्य विद्रोह के साथ ही मिस्र में औपनिवेशिक शासन का अंत हो गया. कुछ सैन्य अधिकारियों ने आजाद अधिकारी घोषित कर दिया.

वर्ष 1954 में राष्ट्रपति गमाल अब्देल नासर की हत्या के असफल प्रयास के बाद मुस्लिम ब्रदरहुड को प्रतिबंधित कर दिया गया. हज़ारों कार्यकर्ताओं को जेल में डाल दिया गया, उन्हें प्रताड़ित किया गया. इसके बाद संगठन भूमिगत हो गया.

मुस्लिम ब्रदरहुड ने अनवर अल सादात को समर्थन दिया. सादात 1970 में मिस्र के राष्ट्रपति बने. शुरुआती दौर में दोनों ने एक दूसरे का सहयोग किया लेकिन बाद में दोनों के संबंधों में खटास आ गई.

1980 के दशक में मुस्लिम ब्रदरहुड ने राजनीतिक मुख्यधारा में वापस शामिल होने की कोशिश की. मुस्लिम ब्रदरहुड ने 1984 में वफाद पार्टी और 1987 में उदारवादी दलों के साथ गठबंधन किया. इसके बाद 2000 में मुस्लिम ब्रदरहुड 17 सीटें जीतकर मिस्र के प्रमुख विपक्षी दल शामिल हो गया.

पाँच साल बाद मुस्लिम ब्रदरहुड ने सबसे अच्छा प्रदर्शन किया और निर्दलीय उम्मीदवारों के साथ मिलकर 20 फीसदी सीटें जीत ली. इन चुनाव परिणामों से राष्ट्रपति होस्ने मुबारक को तगड़ा झटका लगा.

दमन चक्र
सरकार ने मुस्लिम ब्रदरहुड के खिलाफ दमन चक्र चलाया. इसके सैकडो़ सदस्यों को पकड़ लिया गया. साथ ही संविधान में बदलाव किया गया.

इसके तहत निर्दलीय उम्मीदवारों के राष्ट्रपति पद के लिए खड़े होने पर प्रतिबंध लगा दिया गया. इसके अलावा चरमपंथी गतिविधियों को रोकने के लिए भी एक विधेयक लाया गया, इसने सुरक्षा बलों की शक्तियां बढ़ा दी.

होस्नी मुबारक की पार्टी नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी (जो उस समय सत्ता में थी) ने मुस्लिम ब्रदरहुड के प्रभाव को घटाने के लिए कड़ी मेहनत की ताकि 2010 के संसदीय चुनावों में उन्हें और फायदा न हो सके, पर ये दांव भी उन्हें उल्टा पड़ा.

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राष्ट्रपति पद के लिए मुस्लिम ब्रदरहुड के उम्मीदवार हैं मोहम्मद मुरसी
2011 में मिस्र में जनता सड़कों पर उतरने लगी और राष्ट्रपति होस्नी मुबारक पर पद से हटने का दवाब बढ़ने लगा .

जनता में फैल रहे असंतोष के पीछे मुस्लिम ब्रदरहुड को जिम्मेदार ठहराया गया लेकिन संगठन का कहना था कि ये आम जनता की आवाज है.

लेकिन जन क्रांति के दौरान तहरीर चौक पर ब्रदरहुड के परंपरागत नारे नजर नही आए.

मुबारक शासन का अंत
आखिरकार तीस सालों से सत्ता का सुख भोग रहे होस्नी मुबारक के शासन का अंत हो गया. मुबारक को क्रांति के दौरान प्रदर्शनकारियों को जान से मारने के आदेशों को न रोक पाने का दोषी पाया गया है और उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के अभियोग भी चल रहे हैं.

अदालत ने जून 2012 में उन्हें आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई.

इसी साल हुए मिस्र के राष्ट्रपति चुनावों पर अब नजर सबकी नजर है और देखना ये है कि ब्रदरहुड सत्ता के कितने करीब पहुंचता है.

चुनाव नतीजे
मिस्र में सत्तारूढ़ सैन्य परिषद ने पहले से ज्यादा अधिकार अपने हाथ में ले लिए हैं. मुस्लिम ब्रदरहुड इसका विरोध कर रहा है.

मुस्लिम ब्रदरहुड के उम्मीदवार मोहम्मद मुरसी को अपने प्रतिद्वंद्वी से आगे माना जा रहा है.

सैन्य परिषद ने कहा है कि वो नव-निर्वाचित राष्ट्रपति को इस महीने के आखिर तक सत्ता सौंप देगी.

ब्रदरहुड हो भले ही सबसे प्रभावशाली विपक्षी आंदोलन माना जाता हो लेकिन ये साफ़ नहीं है कि ब्रदरहुड इस्लामी शासन प्रणाली चाहता है या लोकतांत्रिक समाज में विश्वास रखता है. अभी ये भी साफ़ नहीं कि मिस्र में क्या दोनों तरह के समाज के लिए भी जगह बन सकती है.

मुस्लिम ब्रदरहुड के संबंध लेबनान स्थित शिया चरमपंथी संगठन हिज़्बुल्लाह और कट्टरपंथी फलस्तीनी संगठन हमास जैसे संगठनों से भी हैं जिसके कारण अमरीका के साथ ब्रदरहुड के रिश्ते बेहद ख़राब रहे हैं.

यही कारण है कि जब पश्चिम या अमरीका के नेता मिस्र में सत्ता में बदलाव की बात करते हैं तो वो चाहते हैं कि सत्ता मुस्लिम ब्रदरहुड के हाथ में न चली जाए.