UP के एक भी मुसलमान ने भाजपा को वोट दिया हो, ऐसा कोई सबूत नहीं है

उत्तर प्रदेश में भाजपा ने अपनी जीत को लेकर मुस्लिमों के समर्थन के बारे में काफी कुछ कह रही है लेकिन हकीकत ठीक इसके उलट है। भाजपा  किस आधार पर कह रही है कि मुस्लिमों ने किसको वोट किया?

बयानबाजी और मीडिया में चले प्रोपगंडे के अलावा और कोई सबूत नहीं है जिससे साबित हो सके कि उत्तर प्रदेश के मुसलमानों ने भाजपा को वोट दिया है। कोई भी निर्वाचन क्षेत्र ऐसा नहीं है जहां भाजपा को मिले मत उस निर्वाचन क्षेत्र की हिंदू जनसंख्या से अधिक हो।

साहिबाबाद निर्वाचन क्षेत्र की बात करें तो यहाँ से जीतने वाले भाजपा उम्मीदवार सुनील कुमार शर्मा ने 61 प्रतिशत वोट प्राप्त किये हैं जबकि इस क्षेत्र में हिंदू जनसंख्या का हिस्सा 60 से 65 प्रतिशत के बीच है। हिंदू और मुस्लिम आबादी का मतों के शेयर संबंधी डाटा दैटनेट इंडिया पर आया है, जिसने भारत के चुनाव आयोग और भारत की जनगणना का भी ब्यौरा दिया है।

यहाँ कांग्रेस और बसपा के उम्मीदवारों को 36 प्रतिशत मत मिले और जबकि इस निर्वाचन क्षेत्र की मुस्लिम जनसंख्या 35 और 40 प्रतिशत के बीच है। मुस्लिम आबादी वाले क्षेत्र में सीटें जीतने वाले भाजपा उम्मीदवारों का मतलब यह नहीं है कि मुसलमानों ने भाजपा को वोट दिया। उम्मीदवारों को आमतौर पर जीतने के लिए किसी भी निर्वाचन क्षेत्र में वोटशेयर के 30 से 35 प्रतिशत के बीच मतों की आवश्यकता होती है।

इस चुनाव में भाजपा के उम्मीदवारों की जीत का औसत वोट 43.64 प्रतिशत रहा। उत्तर प्रदेश में कुछ मुस्लिम बहुल वाले निर्वाचन क्षेत्र हैं। यूपी में केवल सात विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ मुस्लिमो की तादाद 50% से ज्यादा है (जिसका मतलब है कि एक पार्टी मुस्लिम वोटों के बिना राज्य में जीत सकती है)।

वहीँ 30 % मुस्लिम आबादी वाले 82 निर्वाचन क्षेत्र हैं जिनमे से भाजपा ने 62 सीट पर जीत दर्ज की है। इससे लगता है कि इन 60 निर्वाचन क्षेत्रों में मुस्लिम वोट सपा और बसपा के बीच विभाजित हो गया।

भाजपा का संयुक्त वोट मुस्लिम आबादी की तुलना में कहीं अधिक था। भाजपा को बाहर रखने के लिए रणनीति के तौर पर वोट देने के बजाय यह तर्क दिया जा सकता है कि यूपी के मुसलमान वास्तव में रणनीति के तहत मतदान करने में असफल रहे।