मुस्लिम स्वतंत्रता सेनानी जिन्होंने भारत के बंटवारे का किया विरोध

इतिहास गवाह है कि भारत के विभाजन 10 सबसे बड़ी त्रासदियों में से एक है। भारत और पाकिस्तान के बटवारे में न जाने कितनी ही ज़िंदगियाँ दाव लगी। एक तरफ भारत को औपनिवेशिक ब्रिटिश नीति से आज़ादी मिली वहीं बटवारे का दर्द।

कई लोग मानते थे कि उस समय के मुस्लिम नेता दूसरा देश चाहते थे। वो भारत में नहीं रहना चाहते थे। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि अल्पसंख्यक समुदाय के कई नेताओं थे, जिन्होंने विभाजन के विचार का पूरा विरोध किया था।

1940 के दशक के मध्य में मुस्लिम लीग ने मुस्लिमों के लिए एक अलग देश बनाने की प्रक्रिया को शुरू कर दिया था। जिसमें वक़्त 1919 में जमिती उलमा-ए-हिंद (जेयूएच), एक राजनीतिक संगठन के रूप में स्थापित किया गया था और साथ ही जामिया मिलिया इस्लामिया की नीव रखी गई थी।

इतना ही नहीं राष्ट्रवादी शिक्षकों और छात्रों के एक समूह ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय छोड़ दिया। इसके समर्थक ब्रिटिश झुकाव के खिलाफ विरोध किया और भारत के विभाजन का विरोध करने के लिए जामिया मिलिया इस्लामिया की स्थापना की।

हालांकि ये कहा जाता है की अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के कुछ लोग दो राष्ट्र सिद्धांतों का समर्थन कर रहे थे। जिनके विरोध में जामिया मिलिया इस्लामिया पैदा।