संभल की नग़मा खान की 29वीं रैंक है. नग़मा की क़ाबिलयत का डंका पुरे सम्भल में मचता है. वो ऑस्ट्रेलिया, स्विटजरलैंड और जापान में भाषण दे चुकी हैं.
नग़मा ने नई दिल्ली के जमिया मिल्लिया इस्लामिया से एलएलएम किया है. इनके पिता मुबीन खान सम्भल में इंजिन बोरिंग मैकेनिक हैं. उनके अनुसार नग़मा ने बहुत से बंद रास्ते खोल दिए हैं.
सम्भल की ही समीना जमील भी नग़मा के ही साथ जज बनी हैं. इनकी 34वीं रैंक है. समीना को शुरू से ही पढ़ाई का माहौल मिला और बेहतरीन सपोर्ट भी. इनके पिता जमील अहमद सचिवालय में कर्मचारी रहे हैं, वहीं इनके भाई मोहसिन जमील उत्तर प्रदेश पुलिस में डिप्टी एसपी हैं.
हापुड़ की ज़ेबा रऊफ़ इस सूची में 35वीं रैंक पर हैं. वो जिस राजपूत मुस्लिम समाज से आती हैं, उसमें लड़कियों के पढ़ने की दर सबसे कम है. मगर उनके पिता रऊफ़ अहमद को जज बनाने की जिद थी. वहीं ज़ेबा के भाई समीउल्लाह खान ने अपनी बहन की तैयारी में मदद की. समीउल्लाह जामिया मिल्लिया इस्लामिया में पढ़ते हैं.
बुलंदशहर पुलिस में बतौर एडीपीओ तैनात अर्शी नूर भी इस सूचि में हैं. इन्हें 117वीं रैंक मिली है. इनकी ख़ास ख़ास बात यह है कि इन्होंने अलग से कोई तैयारी नहीं की. नौकरी करते हुए समय निकालकर पढ़ती थी.
अर्शी एटा की हैं और इनके पिता नुरुल हसन जनपद न्यायालय के प्रशासनिक सहायक रहे हैं. अर्शी नूर सोशल मीडिया पर काफी सक्रिय रही है. फेसबुक पर ‘आवर ड्रीम पीसीएस जे’ नाम का एक पेज़ भी चलाती थी. अब उनका सपना सच हो गया है.
मुज़फ़्फ़रनगर की अंजुम सैफ़ी की कहानी थोड़ी अलग है. हार्डवेयर की दुकान चलाने वाले इनके पिता रशीद अहमद की 25 साल पहले हत्या इसलिए कर दी गई थी, क्योंकि इन्होंने एक दिन बदमाशों को हॉकर से पैसे छीनते देखा तो उन्होंने रोकने की कोशिश की थी. उनके एक भाई ने सिर्फ़ इसलिए शादी नहीं की, क्योंकि वो अंजुम को जज बनाना चाहते थे.
एक बातचीत में अंजुम ने माना कि उसने बहुत मुश्किल दौर देखा मगर अब कुछ भी बुरा याद नहीं रखना चाहती.