नई दिल्ली: जब देश बंटा हुआ तो मौलाना आज़ाद को यकीन था कि यहाँ सबके साथ इंसाफ हो गया मगर जब देश का संविधान लागू हुआ तो उसके कुछ महीने बाद ही धारा 341 में से मुसलामानों को आरक्षण से बाहर कर दिया गया।
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यह मुसलमानों के साथ पहला धोका था उसके बाद जज पर जाने का टिकट कई गुणा बढ़ा कर दूसरा धोका दिया गया तीसरा धोका उस समय दिया गया जब 1954 में वक्फ एक्ट तो बनाया गया मगर आज तक वक्फ जायदाद पर नाजायज़ कब्जे जारी हैं और मस्जिदों पर प्रतिबंध की गई। एक्ट के मुताबिक सरकार ने वक्फ बोर्ड में अपने लोगों को बैठाया ताकि चुनाव फंड के लिए वक्फ जायदाद पर बेचा जा सके। यहाँ सवाल उठता है कि क्या हमारी लीडरशिप फेल हुई या उसे धोका दिया गया। इन विचारों का इज़हार प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया में आयोजित सेमिनार शीर्षक ‘क्या मुस्लिम लीडरशिप फेल हो गई है’ मैं अपने अध्यक्ष भाषण में एडवोकेट शाहिद अली ने किया।
वतन समाचार फॉर्म के बैनर तले इस सेमिनार में एडवोकेट शाहिद अली ने आगे कहा कि दिल्ली में 53 मस्जिदों पर नमाज़ की प्रतिबंध है और हमारी मुस्लिम लीडरशिप खामोश है। मौलाना आज़ाद यूनिवर्सिटी हैदराबाद के चांसलर फीरोज़ बख्त अहमद ने कहा कि आज मुस्लिम लीडर किसी भी पार्टी में हों, जो उन्हें भूमिका निभाना चाहिए था, वह दिखाई नहीं देता।