इंजीनियरिंग छात्र को गुजरात में नहीं दी नौकरी, कहा- मुसलमानों को जॉब न देने का ऊपर से ऑर्डर है

जामिया मिलिया इस्लामिया के दो इंजीनियरिंग स्नातकों ने नोएडा स्थित एक कंसल्टेंसी पर आरोप लगाया है कि मुस्लिम होने की वजह से उन्हें कंसल्टेंसी ने एनटीपीसी ऑफ-रोल फर्म में भर्ती के लिए साक्षात्कार में बैठने नहीं दिया। कंसल्टेंसी JDVL समूह की है। 

साउथ लाइव से बातचीत के दौरान दिल्ली के रहने वाले दोनों युवाओं मोतासिर हसन और अबू नोमन ने बताया कि कंसल्टेंसी से मेल मिलने के बाद जब 26 जुलाई को वह वहां पहुंचे तो उन्हें साक्षात्कार में नहीं बैठने दिया गया।

उन्हें बताया गया कि मुस्लिम पहचान की वजह से वह इस जॉब के लिए अयोग्य हैं। इसके साथ ही उन्हें यह भी बताया गया कि ऊपर से आदेश हैं कि एनटीपीसी गुजरात के लिए मुसलमानों की भर्ती न की जाए।

अबू नोमन ने बताया कि मेल मिलने के बाद जब वह कंसल्टेंसी पहुंचे तो वहां मौजूद महिला एचआर ने रेज़्यूमे देखते ही उनसे साफ कहा, “हम मुसलमानों की भर्ती नहीं कर रहे”। 

मोतासिर हसन ने बताया कि जब महिला एचआर से इसकी वजह पूछी गई तो उन्होंने जवाब दिया कि उन्हें ऐसा करने के लिए ऊपर से निर्देश हैं। 

हसन ने जैमिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में स्नातक किया है और अब L&T Subcontract में काम कर रहे हैं। वहीं अबू नोमन भी इंजीनियरिंग स्नातक हैं, जो फिलहाल बेरोज़गार हैं।

मोतासिर हसन ने कहा, “मुझे साक्षात्कार में सिर्फ इसलिए बैठने नहीं दिया गया क्योंकि मैं एक मुस्लिम हूं, क्या पाखंड है! किसी का आंकलन उसके धर्म के आधार पर कैसे किया जा सकता है? मुझे हैरानी है, भारत किस ओर जा रहा है, क्या यही ‘अच्छे दिन’ हैं? 

JDVL कंसल्टेंसी ने इस घटना की पुष्टि की, लेकिन किसी भी सांप्रदायिक एंगल से इनकार करते हुए कहा कि मुसलमानों की भर्ती के लिए उनकी कोई ऐसी नीति नहीं है। कंपनी की प्रवक्ता शुभरा ने कहा कहा कि यह फैसला गुजरात स्थित कंपनी के हित में था, जो कि उनके मुताबिक, एक सांप्रदायिक रूप से अस्थिरता वाला राज्य है।

शुभरा ने बताया, “हम एनटीपीसी फर्म की भर्ती कर रहे थे जो गुजरात में स्थित है। अगर हम उन्हें (मुस्लिम युवकों) गुजरात भेजते हैं, तो इससे कंपनी के लिए समस्या पैदा हो सकती है। जबकि पंद्रह दिन पहले ही वहां सांप्रदायिक टकराव हुए थे। हालांकि, शुभरा ने इस आरोप का खंडन किया कि “ऊपर से आदेश” था।

जब मुस्लिम युवाओं से यह पूछा गया कि क्या वे कथित भेदभाव के खिलाफ शिकायत करेंगे, तो उन्होंने कहा कि वे इसके बारे में निश्चित नहीं हैं क्योंकि उनके पास साबित करने के लिए कोई ठोस सबूत नहीं हैं, यह एक फेस-टू-फेस बातचीत थी।

अबू नोमन ने कहा,”मैं उलझन में था और उसने जो कुछ कहा वह रिकॉर्ड नहीं कर सका। अगर यह रिकॉर्ड होता तो मैं निश्चित रूप से इसकी शिकायत करता”। घटना के बाद, मोतासिर ने इस “शर्मनाक” अनुभव को सोशल मीडिया पर भी साझा किया। 

ग़ौरतलब है कि यह पहली बार नहीं है जब मुसलमानों को अपनी पहचान और नाम की वजह से नौकरी से वंचित किया गया। इससे पहले मुंबई स्थित एमबीए के स्नातक जीशन खान को भी अपनी मुस्लिम पहचान की वजह से नौकरी से वंचित किया गया था।