मुस्लिम महिलाएं इस्लामी क़ानून का गंभीरता से अध्ययन करें

बरेली: कुछ दिनों पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने खास कार्यक्रम ‘मन की बात’ में खासतौर पर हज यात्रा पर बगैर महरम के जाने वाली पालिसी का ज़िक्र करते हुए कहा कि हमारी सरकार ने हज यात्रा के दौरान किसी मुस्लिम महिला के साथ महरम के मौजूद होने वाली प्रतिबन्ध पर ध्यान दिया।

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आज़ादी के 70 साल बाद भी यही जारी है। अल्पसंख्यक मंत्रालय ने अब इस पर प्रतिबंध को खत्म कर दिया है। प्रधानमंत्री मोदी के जरिए दिए गये इस बयान के बाद सभी मुस्लिम उलेमा व बुद्धिजीवियों ने कड़ी आलोचना की है। इस मुद्दे पर गौर करने की उद्देश्य से स्थानीय रज़ा हज सेवा समिति के सरपरस्त मौलाना शहाबुद्दीन रिज़वी और रज़ा हज सेवा समिति के सेक्रेटरी और जनता के सेवक हाजी नाजिम बेग की अध्यक्षता में एक बैठक आयोजन किया गया।

मौलाना शहाबुद्दीन और हाजी नाजिम बैग ने अपने साझा संबोधन में केंद्रीय सरकार हज कमीटी को चेतावनी देते हुए कहा कि शरई क़ानून के मुताबिक महिलाओं को अपने महरम के साथ हज पर जाने की इजाजत है और बगैर महरम या न महरम के साथ जाने से मना किया गया है। हज कमीटी को इस्लामी शरई क़ानून को गहराई से समझने की ज़रूरत है। अपने संबोधन में उन्होंने अधिक कहा कि हज के मौके पर जब बगैर महरम के महिलाओं की भीड़ हज के मौके पर जमा होगा तो किस तरह की स्थिति मक्का व मदीना की पवित्र जमीन पर होगी।

इसका अंदेशा न हज कमीटी को है और न ही प्रधानमंत्री मोदी को। अपने संबोधन में उन्होंने उन महिलाओं को जो कि कमीटी व केंद्रीय सरकार के इस फैसले का समर्थन कर रही हैं से कहा कि एसी महिलाओं को लाज़मी है कि वह हज यात्रा पर जाने से पहले इस्लामी कानून का गंभीरता से अध्ययन करें।