मुस्लिम महिलाओं के कंधे पर बंदूक रखकर इस्लाम को निशाना बनाया जाता है: निदा रहमान

औरत को कोई धर्म नहीं होता है वो हर धर्म में दरिद्र होती है। मर्द औरत के हितैषी बनकर अपना हित साधता है। राजनितिक पार्टियां भी यही करती आ रही हैं। अगर राजनेताओं को वाकई महिला सशक्तिकरण की चिंता होती तो वो 33 प्रतिशत आरक्षण वाले मसले पर कुंडली मारकर नहीं बैठते। मैं एक साथ तीन तलाक़ की हिमायती नहीं हूँ और इसको सिरे से नकारती हूँ लेकिन जब कोई मुस्लिम महिलाओं के कंधे पर बन्दूक रखकर इस्लाम को निशाना बनाता है तो मुझे ऐसे हितेषियों से सख्त ऐतराज है। कुछ तथाकथित हितैषी मुस्लिम महिलाओं की बदहाली को आगे रख कर मज़हब को गाली देते हैं और इनमें दूसरे मज़हब के नफऱत फैलाने वाले लोग ज़्यादा होते हैं।

तीन तलाक़ के विरोध में सुप्रीम कोर्ट का रूख़ करने वाली मुस्लिम औरतें ही हैं जो खुद पीड़ित भी हैं। तो जो हम औरतों से सहानूभूति दिखाकर हमारे मज़हब को गाली देते हैं उनसे सीधे कहना है कि आप हमारी चिंता मत करिए। हम जितने भी कमज़ोर हों लेकिन अब मज़बूत हो रहे हैं , हम अपने हक़, अपने अधिकारों के लिए खुद लड़ सकते हैं। आप हमारी फ़िक्र में दुबले मत होइए। मुस्लिम औरतें बदहाली का शिकार हैं लेकिन किसी और की चिंता से उनके हालात सुधर नहीं जाएंगे। उन्हें खुद लड़ना है और वो लड़ भी रहीं हैं। मुस्लिम औरतों की बदहाली को उनका परिवार, उनका पिता, उनका पति काफी हद तक बदल सकता है खुद अपनी सोच बदलकर। औरत को खुद सा समझकर। जब तक मर्द औरत को ग़ुलाम समझता रहेगा ये संघर्ष जारी रहेगा।

मैंने आजतक ऐसी कोई पोस्ट नहीं की है, लेकिन मैं लगातार ऐसे लोगों को देख रही हूँ हो हम औरतों को इस्तेमाल करना चाहते हैं। आप देखिये औरत सिर्फ मुस्लिम ही बदहाली का शिकार नहीं है। औरत सिर्फ औरत है वो चाहे मुस्लिम हो हिन्दू हो या कोई और मज़हब की। औरत को रोकने वाले, उसको बधुआ समझने वाले हर मज़हब में हैं। अगर मुस्लिम औरत दरगाह में जाने के लिए लड़ती है तो हिन्दू भी मंदिर में जाने के लिए लड़ती है।

रोज़ाना लड़कियां बलात्कार, छेड़छाड़ का शिकार होती हैं वो हर धर्म की होती हैं। दहेज़ के लिए रोज़ाना कई लड़कियां मार दी जाती हैं। लड़कियों को अभी भी पढ़ने से रोका जाता है, अगर पढाई करनी भी है तो उतनी की शादी में कोई रुकावट न आये। लड़कियों के प्रेम करने पर पाबंदी है। और सिर्फ़ मुस्लिम महिलाओं के साथ नहीं होता हैं।

बात खुले दिमाग की है आप अगर वाकई महिला हितैषी हैं तो आपकी रूह सिर्फ़ तीन तलाक़ पर नहीं कांपेगी, आपकी संवेदनशीलता सिर्फ़ मुस्लिम औरतों के लिए मत जगाइये। देखिये अपने आसपास हर शोषित औरत बिना मज़हब के नज़र आएगी। खुद अपने औरत होने के मज़हब के साथ। आपकी मंशा अगर साफ है तो आँखों सिर्फ़ औरत को देखिये ,हिन्दू,मुस्लिम औरतों को नहीं।