रोहिंग्या मुसलमानों की और बढ़ी मुश्किलें, म्यांमार ने UN की मदद पर लगाई रोक

म्यांमार सरकार ने संयुक्त राष्ट्र की सभी सहायता एजेंसियों को खूनी सैन्य अभियान में प्रताड़ित किए गए हजारों नागरिकों तक खाना, पानी और दवा की आपूर्ति करने से रोक दिया है।

म्यांमार में संयुक्त राष्ट्र के रेसिडेंट कॉर्डिनेटर ऑफिस ने गार्जियन को बताया कि सुरक्षा के हालात और सरकार के क्षेत्रीय यात्रा प्रतिबंधों के चलते वितरण को निलंबित करना पड़ा। सरकार मदद पहुंचाने की अनुमति नहीं दे रही थी।

ऐसा कहा गया है कि संयुक्त राष्ट्र अधिकारियों के साथ यह सुनिश्चित करने के लिए संपर्क में है कि मानवतावादी अभियान जल्द से जल्द फिर से शुरू किया जा सके। उन्होंने बताया कि यह मदद रखीन प्रांत के अन्य हिस्सों को दी जा रही थी।

इस इलाके में कई दशकों से जारी घातक हिंसा में, सेना पर रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ अत्याचार का आरोप है, जिनमें से हजारों जलते हुए गांवों से पड़ोसी देश बांग्लादेश पलायन कर गए।

संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी (यूएनएचसीआर), संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या निधि (यूएनएफपीए) और संयुक्त राष्ट्र के बच्चों के फंड (यूनिसेफ़) के स्टाफ ने एक सप्ताह से ज़्यादा समय से उत्तरी रख़ीन में कोई भी क्षेत्रीय कार्य नहीं किया है। इससे रोहिंग्या मुसलमानों के साथ बौद्ध निवासी भी प्रभावित होंगे।

संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्लूएफपी) ने कहा है कि राज्य के अन्य हिस्सों में भी वितरण को निलंबित करना पड़ा, जिससे तकरीबन ढ़ाई लाख लोगों तक नियमित भोजन नहीं पहुंच सका।

ऑक्सफाम और सेव द चिल्ड्रेन सहित सोलह प्रमुख गैर-सरकारी सहायता संगठनों ने भी शिकायत की है कि सरकार ने संघर्ष क्षेत्र तक पहुंच प्रतिबंधित कर दी है।

म्यांमार में मानवतावादी मामलों के समन्वय के लिए संयुक्त राष्ट्र कार्यालय के प्रवक्ता पियरे पेरोन ने कहा, उत्तरी राखीन में चल रहे हिंसा से प्रभावित हजारों लोगों के भाग्य के बारे में मानवतावादी संगठन चिंतित हैं।

ग़ौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी (यूएनएचसीआर) के मुताबिक, पिछले सप्ताह म्यांमार के उत्तर-पश्चिम में रोहिंग्या-बहुसंख्यक इलाकों में 2,600 से ज़्यादा घर जला दिए गए और लगभग 58,600 रोहिंगिया म्यांमार से पड़ोसी देश बांग्लादेश भाग गए।