‘उर्दू’ ही है जो इतनी मुख़ालफत के बावज़ूद जिंदा है- नंदिता दास

नई दिल्ली। वरिष्ठ संवाददाताजश्न-ए-रेख्ता के दूसरे दिन शनिवार को मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम में उर्दू के चाहने वालों का मजमा जुटा। सर्दी की गुनगुनी धूप में उर्दू जुबान की मिठास ने मिलकर माहौल में अलग ही समां बांध दिया।

एक तरफ महफिल खाना में मंटो के रूबरू बैठे कलाकार थे तो बज्म-ए-ख्याल में उर्दू अफसाने की जिंदा हकीकत पर बात कर रहे अदीब। वहीं दयार-ए-इजहार ख्वातीनों का मुशायरा तो कुंज-ए-सुखन में बज्म-ए-नौबहार की रंगतें बिखर रही थीं।

हजारों की तादाद में लोग अपने चहेते कलाकारों, फनकारों और अदीबों को सुनने पहुंचे थे। यहां फिल्म जगत से शबाना आजमी, मुजफ्फर अली, वहीदा रहमान जैसी नामचीन शख्सीयतें आयोजन का हिस्सा बनीं।बॉक्स:मंटो से सच बोलना सीखा, कुछ ज्यादा ही बोल दिया: नवाजुद्दीनबॉलीवुड कलाकार नवाजुद्दीन मंटो से रूबरू कार्यक्रम में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि मैंने सच बोलना मंटो से सीखा।

फिर इतना सच बोल दिया कि बवाल हो गया। अब मंटो को अपने भीतर से निकाल रहा हूं तो दर्द हो रहा है। वह चर्चा में अपनी आत्मकथा के संदर्भ में बोल रहे थे। उनके साथ नंदिता दास भी आई थीं। नवाज जल्द ही फिल्म मंटो में मंटो के किरदार में भी आ रहे हैं।

नंदिता दास ने महिलाओं के प्रति समाज के रवैये पर तीखी प्रतिक्रियाएं दीं। ‘उर्दू ही है जो इतनी मुखालफत के बावजूद जिंदा है’उर्दू के जश्न पर हिन्दुस्तान उर्दू के नामी शायरों और अदीबों से उर्दू के नयेपन, उसकी चिंताएं और उपलब्धियों पर बात की।

काजी अब्दुल सत्तार, उपन्यासकारउर्दू में नया क्या- उर्दू में अफसाना, अदब और लिखने के तरीके सबमें नयापन आ रहा हैचिंता- उर्दू को जिंदा रखने में हुकूमत को योगदान नहीं, स्कूलों में उर्दू नहीं पढ़ाई जातीउपलब्धियां- इतने विरोध के बाद भी फिल्मों में, किताबों, अफसानों में और दिलों में जिंदा है।

नोमान शौकशायरउर्दू में नया क्या- जिनकी मातृभाषा उर्दू नहीं हैं, ऐसे नये लोग भी जुड़ रहे हैं। युवा भी सीख रहे हैंचिंता- नफरत और धार्मिक उन्माद का असर संस्कृति पर पड़ता है, शिकार भाषा होती हैउपलब्धियां- सोशल मीडिया पर आज उर्दू को लोगों ने सिर माथे पर बैठाया है।

नये रूपक गढ़े जा रहेसैय्यद मो अशरफउर्दू में नया क्या- शायरी फारसी अरबी के ज्यादा बोझ से आजाद होकर सादा जुबान हो रही हैचिंता- 35 साल से पहले कम उम्र के बच्चों को यूपी-एमपी जैसे प्रदेशों में स्कूल में पढाई नहीं जातीउपलब्धियां- उर्दू के शौकीन पिछले पांच साल में बढ़े हैं, लेकिन वे इसे लिपि में नहीं पढ़ रहे हैंप्रो शमीम हनफीसाहित्यकारउर्दू में नया क्या- समाज में जो भी घटनाएं या नया परिवर्तन हो रहा है, वही उर्दू के साहित्य में ढल रहा है।

चिंता- ठीक वैसे ही देश की चिंताएं उर्दू की चिंता है। देश का वातावरण और इसे मुसलमान की जबान कहना भी चिंता है।उपलब्धियां- साझी विरासत को बनाने, सहेजने में उर्दू आज फिर आगे आ रही है जो दिख भी रहा है।