अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा ने भारत के एंटी-सेटेलाइट मिसाइल (ए-सेट) परीक्षण की आलोचना की है और कहा है कि इसने इंटरनेशनल स्पेश स्टेशन (आईएसएस) में खतरे को बढ़ा दिया है और इससे अन्य देशों में इसी तरह के परीक्षण करने की प्रतिस्पर्धा उत्पन्न हो सकती है।
इंडिया टीवी न्यूज़ डॉट कॉम के अनुसार, नासा के प्रमुख जिम ब्राइडेन्सटाइन ने सोमवार को कहा कि ए-सैट मिसाइल ने तीन मिनट में लॉ अर्थ आर्बिट (एलईओ) में एक काम कर रहे सेटेलाइट पर सफलतापूर्वक निशाना लगाया, जिससे अंतरिक्ष में कचरे के 400 टुकड़े फैल गए और इसने आईएसएस में खतरे को बढ़ा दिया।
NASA says debris from India's anti-satellite test threatens the International Space Station https://t.co/fb2prR98X6 pic.twitter.com/B2dNcE1Oiu
— CNN (@CNN) April 2, 2019
सीएनएन ने ब्राइडेन्सटाइन के हवाले से कहा, “यह एक भयानक चीज है और इससे टुकड़े आईएसएस के भी ऊपर चले गए हैं।” सीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक, कचरे के 60 टुकड़ों को ट्रैक किया जा सकता है, जिसमें से 24 आईएसएस के ऊपर चले गए हैं।
Nasa says A-Sat test debris pose danger to ISS, Indian experts rubbish claim https://t.co/UrQ377z1zz
— TOI India (@TOIIndiaNews) April 2, 2019
उन्होंने कहा, “इस तरह की गतिविधि भविष्य के अंतरिक्ष यात्रियों के लिए अनुकूल साबित नहीं होगी। यह हमारे लिए स्वीकार्य नहीं है कि हम लोगों को कक्षीय कचरा क्षेत्र का निर्माण करने दें, जो हमारे लोगों के लिए खतरा बन सकता है।”
R Palladino,US State Dept,on NASA's remarks on #MissionShakti:As we’ve said previously, we've a strong strategic partnership with India, &we'll continue to pursue shared interests in space,in scientific&technical cooperation,that includes collaboration on safety&security in space pic.twitter.com/Piw06z3oLD
— ANI (@ANI) April 3, 2019
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 27 मार्च को घोषणा कर कहा था कि भारत ने ए-सैट की क्षमता के साथ ऐतिहासिक सफलता हासिल कर ली है और अमेरिका, रूस और चीन के बाद अंतरिक्ष महाशक्ति बन गया है।
उसके अगले दिन ब्राइडेन्सटाइन ने अमेरिकी प्रतिनिधि सभा के वाणिज्यिक न्याय और विज्ञान उपसमिति को कहा था कि जानबूझकर उपग्रह को नष्ट करना और अंतरिक्ष में कचरा उत्पन्न करना गलत है।
जिसके बाद भारतीय विदेश मंत्रालय ने एक बयान में स्पष्ट किया था कि परीक्षण निचले वायुमंडल में किया गया, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि कोई भी अंतरिक्ष कचरा उत्पन्न ना हो और जो भी कचरा उत्पन्न हो, वह कुछ सप्ताह में धरती पर गिरकर नष्ट हो जाए।