भारतीय राष्ट्रवाद का विचार वैसा बिलकुल भी नहीं है जैसा यूरोपियन देश कहते हैं और इसे फिर से परिभाषित करने की कोशिश अनावश्यक है. ये बातें पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने मंगलवार को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में कहीं. मुखर्जी मोहम्मदन एंग्लो ऑरिएंटल कॉलेज के संस्थापक सर सैयद अहमद खान के 200वें जन्मदिवस समारोह को संबोधित कर रहे थे.
उन्होंने कहा कि राष्ट्रवाद की परिभाषा को फिर से परिभाषित करने के लिए समय-समय पर प्रयास किए गए हैं. ऐसे प्रयास अनावश्यक हैं क्योंकि हमारी राष्ट्रवाद और राष्ट्रीय पहचान की अवधारणा पहचान के आधुनिक और उत्तर आधुनिक निर्माण से पहले ही होती है. यूरोपीय राष्ट्र के संदर्भों में राष्ट्रवाद की अवधारणा भारतीय सभ्यता में एक नई घटना है.
मुखर्जी ने कहा कि क्षेत्र, राजतंत्र, सांसारिक और आध्यात्मिक प्राधिकरण भारत में राष्ट्रवाद को परिभाषित नहीं कर सकते. उन्होंने आगे कहा कि राष्ट्रवाद कानून द्वारा लागू नहीं किया जा सकता है, इसके अलावा ये अदालती हुक्म या फिर घोषणा से भी लागू नहीं किया जा सकता।