नजरिया- मुसलमानों ! दुनिया बदली, बदल जाओ, वरना गुलामी ही मुक़द्दर है

भारत में 11 नवंबर को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह एक बढ़िया कदम है क्योंकि मौलाना आजाद भारत के पहले शिक्षा मंत्री थे, और उनकी जन्मदिवस से बेहतर कोई और शिक्षा दिवस मुमकीन नहीं है।

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दरअसल आधुनिक भारतीय मुसलमानों के इतिहास में, दो ही शख्सियत गुजरी हैं, जिन्हें इस नये दौर की जानकारी हासिल थी। इनमे पहली शख्सियत सर सैयद अहमद खान और दूसरा मौलाना आज़ाद थे।

सर सैयद अहमद खान का कमाल यह था कि वह भारतीय उपमहाद्वीप के मुसलमानों में पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने बखूबी यह समझा कि मुसलमानों का मुकद्दर इस औद्योगिक युग में खुद को आधुनिक शिक्षा से जोड़ने में ही है।

दूसरी ओर मौलाना अबुल कलाम एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने शिक्षा के साथ साथ स्वतंत्र भारत में मुस्लिमों को राजनीतिक मुद्दों का समाधान भी सिखाया।

जबकि इतिहास गवाह है कि मौलाना देश के बंटवारे के सख्त खिलाफ थे, क्योंकि उनका यह मानना था कि बंटवारा भारतीय मुसलमानों के विनाश का कारण साबित हो सकता है, और वही हुआ भी। बंटवारे के बाद न तो भारतीय मुसलमान और न ही पाकिस्तानी मुस्लिम को चैन नसीब हुआ। अब स्थिति यह है कि भारत एक हिंदू राष्ट्र बनने की कगार पर है, और शिक्षा के एतबार से भारतीय मुसलमानों की स्थिति बद से बदतर है।

मौलाना आज़ाद के जन्म दिवस पर सबसे बेहतर श्रद्धांजलि यही हो सकती है कि भारतीय मुस्लिम अल्पसंख्यकों को एक बार फिर से शिक्षा से जोड़ने को लेकर आन्दोलन की कोशिश हो, ताकि वह अपने बस्ती से बाहर निकल सके।

लेकिन सवाल यह भी है कि अब जो शैक्षिक आंदोलन चलेगा वह किस तरह का शैक्षिक जागरूकता पैदा करने के काबिल होगा! यह तब ही संभव हो सकता है जब इस बात का सही अंदाजा हो कि मौजूदा दौर में आवश्यकताएं क्या क्या हैं! क्योंकि अभी के दौर में पकड़ बनाने के लिए शिक्षा हासिल करना एक महत्वपूर्ण जरिया है, इसलिए, सबसे पहले 21 वीं सदी की तेज रफ़्तार दौर को समझने की जरूरत है।

जफ़र आगा