बांग्लादेशी हिंदुओं को नागरिकता देने का भारतीय जनता पार्टी का चुनावी वादा असम की सर्वानंद सोनोवाल सरकार के गले की हड्डी बनता जा रहा है।
एक तरफ जहाँ छात्र और जातीय संगठन इसके विरोध में सड़कों पर उतर गए हैं वहीँ दूसरी तरफ़, असम सरकार की सहयोगी पार्टी – असम गण परिषद (एजीपी) भी इस मुद्दे पर सरकार के समर्थन में नहीं नज़र अ रही है। इस बीच अब नॉर्थ ईस्ट स्टूडेंट्स यूनियन ने भी मुस्लिमों के साथ-साथ अवैध तरीके से हिन्दू नागरिकों को भी वापस भेजे जाने की मांग उठाई।
दरअसल निखिल भारत बंगाली उद्बस्तु समन्वय समिति के बैनर तले लोगों द्वारा बांग्लादेशी हिंदुओं को भारतीय नगारिकता दिए जाने की मांग के बाद छात्र संघ ने विरोध शुरू किया है।
आपनी मांग को लेकर बीते कल एनबीबीयूएसएस के सदस्यों ने धेमाजी जिले के सिलपथर में ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन के एक कार्यालय में तोड़-फोड़ भी की।
एनईएसओ के चेयरमैन सैमुअल जाइरवा ने कहा, “एनईएसओ बांग्लादेश से अवैध घुसपैठ मामले पर अपने विचार पर कायम है और बांग्लादेश से अवैध तरीके से असम और पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में घुस आए हिंदुओं और मुस्लिमों को वापस भेजे जाने की अपनी लंबे समय से उठाई जा रही मांग को फिर से उठाता है।”
उन्होंने कहा, “असम संधि को सच्चे दिल से लागू किया जाना चाहिए और एनईएसओ का मानना है कि अवैध घुसपैठ मामले का समाधान असम संधि को पूरी तरह लागू कर ही निकाला जा सकता है।” एएएसयू कार्यालय में तोड़-फोड़ की निंदा करते हुए जाइरवा ने कहा, “अपराधियों को निश्चित तौर पर तत्काल पकड़ा जाना चाहिए और दोषियों को बिना किसी समझौते के सजा दी जानी चाहिए।”
बता दें कि असम संधि इस बात का साफ़ उल्लेख है कि 24 मार्च 1971 के बाद बांग्लादेश से आए किसी भी व्यक्ति को असम से वापस जाना होगा, चाहे वो हिंदू हो या मुसलमान।