नई दिल्ली। आधार मामले की सुनवाई कर रही देश की सर्वोच्च अदालत ने कहा है कि उसने कभी भी मोबाइल नंबर से आधार को जोड़ने का निर्देश नहीं दिया। पिछले काफी समय से बैंकिंग से लेकर तमाम सेक्टर्स की तरफ से उपभोक्ताओं पर आधार से मोबाइल नंबरों को जोड़ने का दबाव बनाने की बात सामने आई है।
ऐसे में सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी को काफी अहम माना जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सरकार ने 6 फरवरी 2017 को दिए गए उसके आदेश की गलत व्याख्या की है। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को मोबाइल फोन को आधार से अनिवार्य रूप से जोड़ने के सरकार के फैसले पर सवाल खड़े किए।
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि ‘लोकनीति फाउंडेशन’ द्वारा दायर जनहित याचिका पर उसके आदेश में कहा गया था कि मोबाइल के उपयोगकर्ताओं को राष्ट्र सुरक्षा के हित में सत्यापन की जरूरत है। यह पीठ आधार और इसके 2016 के एक कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है।
भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण ( यूआईडीएआई ) की ओर से पेश वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि दूरसंचार विभाग की अधिसूचना ई केवाईसी प्रक्रिया के प्रयोग से मोबाइल फोनों के पुन : सत्यापन की बात करती है। उन्होंने बेंच से कहा कि टेलीग्राफ कानून सेवाप्रदाताओं की ‘लाइसेंस स्थितियों पर फैसले के लिए केंद्र सरकार को विशेष शक्तियां’ देता है।
इसपर संवैधानिक पीठ ने कहा कि ‘आप ( दूरसंचार विभाग ) सेवा प्राप्त करने वालों के लिए मोबाइल फोन से आधार को जोड़ने के लिए शर्त कैसे लगा सकते हैं? पीठ ने आगे अपनी बात में यह भी जोड़ा कि लाइसेंस समझौता सरकार और सेवा प्रदाताओं के बीच है।
वकील ने जोर दिया कि बैंकों और टेलिकॉम कंपनियों के पास नागरिकों का ज्यादा बड़ा डेटा बेस है। उन्होंने कहा कि उदाहरण के लिए वोडाफोन के पास आधार के बिना भी सूचनाओं का एक बड़ा डेटा बेस है। उन्होंने कहा कि ऐसे में आधार डेटा उनके लिए महत्वहीन है।
उन्होंने कहा कि बैंकों के पास भी बहुत ज्यादा सूचनाएं हैं। बैंक के पास किसी शख्स के हर ट्रांजैक्शन की खबर है। किसी ने अपने कार्ड से कब और कहां क्या खरीदा, बैंक सब जानता है। आधार यह सब जानकारी नहीं देता। यह जानकारी पहले से बैंकों के पास है और इसका कमर्शियल इस्तेमाल भी किया जा रहा है।