नई दिल्ली: उर्दू जुबान में जो मिठास है वह किसी और जुबान में नहीं है, यह अलग बात है कि कभी इसको विदेश की जुबान क़रार देने की कोशिश की गई तो कभी उसका वजूद ही समाप्त करना चाहा मगर देश की आज़ादी की जंग में अहम रोल अदा करने वाली, मोहल्लों से निकलकर गली कुचों के रहने वालों की बोल चाल और फ़िक्र का सबसे अहम हिस्सा बन जाने वाली उर्दू जुबान बढ़ाते चली गई।
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इसको बढ़ावा देने में मुशायरों की बड़ी भूमिका है और यह ज़िक्र उर्दू जुबान का नहीं बल्कि देश की संयुक्त संस्कृति का ज़िक्र है। इन विचारों का इज़हार पूर्व चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया एसवाई कुरैशी ने दिल्ली पब्लिक स्कूल में जश्ने बहार ट्रस्ट के अधीन आयोजित मुशायरा जश्ने बहार में भाषण में किया।
मुशायरा का अहम भाषण जश्ने बहार की संस्थापक कामना प्रसाद ने विभिन्न हवालों और सच्चाईयों का हवाला लेते हुए कहा कि उर्दू हमारी संयुक्त संस्कृति का आइना है। बकौल फैज़ अहमद फैज़ ‘हम परवरिशे लोह व क़लम करते रहेंगे’। मुशायरा जश्ने बहार के बैक ड्राप में फैज़ इस मिसरे पर विश्व ख्यातिप्राप्त कलाकार एमएफ हुसैन की बनाई हुई खूबसूरत कैलीग्राफी नजर आती है। मुख्य अतिथि पंडित बिरजू महाराज ने न सिर्फ उर्दू जुबान की प्रशंसा की बल्कि अपनी शादी का सेहरा तक पढ़ कर सुनाया।