झूठा आरोप लगाकर अब्दुल वाहिद शेख को 29 सितंबर वर्ष 2006 को गिरफ्तार किया गया और पुलिस कस्ट्डी में कभी न खत्म होने वाला अत्याचारों का सिलसिला शुरू हुआ।
हालाँकि 26 नवंबर 2015 को अब्दुल वाहिद शेख को बाइज्ज़त रिहा कर दिया गया। वाहिद शेख तो बस एक नाम है। हिन्दुस्तान की जेलों में न जाने ऐसे कितने वाहिद शेख आज भी सड़ रहे हैं और दोज़क बनी ज़िन्दगी काट रहे हैं।
बहरहाल, अब वाहिद शेख ने बंदी के दौरान अपने ऊपर ढाए गए ज़ुल्मों-सितम को एक किताब के ज़रिए दुनिया के सामने रखा है। ‘बेगुनाह क़ैदी’ नाम की इस किताब में आतंकवाद के झूठे मुक़द्दमों में फंसाये गये मुस्लिम नौजवानों की दास्तान का ब्यौरा दिया गया है।
इतना ही नहीं, इस किताब में एजेंसियों का घिनावना चेहरा, पुलिस, ए.टी.एस. और इंटेलिजेंस एजेंसियों की कार्य-प्रणाली, टार्चर, क़ानूनी दाँव-पेंच, अदालतों के रहस्य जानने के साथ-साथ आतंकवाद के केसों से निबटने की कानूनी मदद का भी ज़िक्र किया गया है।
इस किताब के द्वारा आपको बम ब्लास्ट केसों, पुलिस और मीडिया के दावों की हकीक़त भी मालूम होगी।
इस किताब को दिल्ली के पब्लिशर फारोस मीडिया ने हिंदी और उर्दू दोनों जुबान मे पब्लिश किया है . इसकी क़ीमत 300 रूपये है. इस किताब को amazon पर और पब्लिशर की वेबसाइट Pharos media से भी ख़रीदा जा सकता है