केंद्र ने राज्यों को लिखित तौर पर आदेश दिया है कि रोहिंग्या मुसलमानों का पता कर इन्हें भारत से बाहर कर दिया जाए। 8 अगस्त को राज्यों से वार्ता में गृह मंत्रालय ने कहा कि इन अवैध प्रवासियों से न केवल भारतीय नागरिकों के अधिकारों का हनन होता है बल्कि देश के लिए गंभीर सुरक्षा चुनौतियां भी पैदा होती हैं।
केंद्रीय मंत्री किरन रिजिजू ने समाचार एजेंसी रायटर्स को बताया कि भारत में रहने वाले तकरीबन 40,000 रोहिंग्या मुसलमान अवैध प्रवासी हैं को बाहर निकालने का फैसला किया है। इनमें संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी के साथ रजिस्टर्ड रोहिंग्या भी शामिल हैं।
संयुक्त राष्ट्र के शरणार्थी उच्चायुक्त (UNHCR) ने भारत में लगभग 16,500 रोहिंग्या को पहचान पत्र जारी किए हैं और साथ ही यह भी कहा है कि उनकी (रोहिंग्या) उत्पीड़न, मनमानी गिरफ्तारी, हिरासत और निर्वासन से बचाने में मदद की जाए।
लेकिन नरेंद्र मोदी सरकार के वरिष्ठ मंत्री रिजिजू ने अपने एक साक्षात्कार में कहा कि यूएनएचसीआर का पंजीकरण बेतुका है। उम्होंने कहा कि वह ऐसा (UNHCR) कर रहे हैं, हम उन्हें पंजीकरण से नहीं रोक सकते, लेकिन हम शरणार्थियों के समझौते को मंज़ूरी नहीं देंगे।
बता दें कि किरण रिजिजू ने पिछले सप्ताह संसद में कहा था कि मौजूद आंकड़ों के अनुसार 14,000 से अधिक रोहिंग्या मुसलमान UNHCR में रजिस्टर्ड हैं और अभी वे भारत में रह रहे हैं।
रिजिजू ने कहा कि वे सभी (रोहिंग्या) अवैध आप्रवासी हैं, उनके पास यहां रहने का कोई आधार नहीं है। जो कोई भी गैरकानूनी प्रवासी है, उसे निर्वासित किया जाएगा।
UNHCR के भारत कार्यालय ने सोमवार को गैर-रिफॉलमेंट के सिद्धांत या शरणार्थियों को वापस उस जगह न भेजा जाना जहां वह खतरा महसूस करते हैं, इसको अंतर्राष्ट्रीय कानून का हिस्सा माना गया था और यह सभी राज्यों पर बाध्यकारी है चाहे उन राज्यों के रेफ्यूजी कन्वेंशन पर हस्ताक्षर हों या नहीं।
कार्यालय ने कहा कि उसे रोहिंग्या शरणार्थियों को निर्वासित किए जाने की योजना के बारे में कोई आधिकारिक जानकारी नहीं मिली।