बरकतुल्लाह भोपाली- आज़ादी का वह सितारा जिसने हिन्दू-मुस्लिम को अंग्रेजों के खिलाफ एक किया

अब्दुल हाफ़िज़ मोहम्मद बरकतुल्लाह जो बाद में मौलाना बरकतुल्लाह भोपाली के नाम से मशहूर हुए इनका जन्म 7 जुलाई 1854 में भोपाल के इटोरा नाम के मोहल्ले में हुआ। 20 सितम्बर 1927 बरोज़ मंगल की रात मौलाना बरकतुल्लाह भोपाली की आख़री रात थी।

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मौलाना बरकतुल्लाह भोपाली भारत के महान स्वतंत्रता सेनानीयों में से एक थे। मौलाना बरकतुल्ला सर्व-इस्लाम आंदोलन से हम दर्दी रखने वाले ब्रितानी साम्राज्य-विरोधी क्रांतिकारी थे। जिन्होंने अपनी जिंदगी का ज्यादातर हिस्सा विदेश में बिताया और भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलनों में सहयोग दिया। इन्हें हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक भी कहा जाता है।

यही वजह रही कि इन्होने 1915 में राजा महेन्द्र प्रताप सिंह और मौलाना उबैदुल्ला सिंधी से मिल कर प्रवास में भारत की पहली अर्ज़ी सरकार का एलान कर दिया। राजा महेन्द्र प्रताप सिंह इस के पहले राष्ट्रपति थे और मौलाना बरकतुल्ला इस के पहले प्रधान मंत्री।

1915 में तुर्की और जर्मन की सहायता से अफ़ग़ानिस्तान में अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ चल रही ग़दर लहर में भाग लेने के वास्ते मौलाना बरकतुल्लाह अमेरिका से काबुल पहुँचे।

देश की फ़िक्र इतनी कि जब उनका आखिरी वक्त आया वह अपने पुरे होश व हवास में थे। उन्होंने अपने कुछ साथियों से जो उस वक्त उनके बिस्तर के पास मौजुद थे, उनसे कुछ इस तरह की बातें की।

“पूरी ज़िन्दगी मैने पुरी ईमानदारी के साथ अपने वतन की आज़ादी के लिए संघर्ष करता रहा। यह मेरी ख़ुशक़िसमती है कि मेरी नाचीज़ ज़िन्दगी मेरे प्यारे वतन के काम आई। आज इस ज़िन्दगी से रुख़सत होते हुए जहां मुझे इस बात का अफ़सोस है कि मेरी ज़िन्दगी में मेरी कोशिश कामयाब न हो सकी। वहीं मुझे इस बात का भी इतमिनान है कि मेरे बाद मेरे मुल्क को आज़ाद करने के लिए लाखों लोग आज आगे बढ़ आए हैं। जो सच्चे, बहादुर और जांबाज़ हैं। मै इतमिनान के साथ अपने प्यारे वतन की क़िसमत इनके हांथो में सोंप कर जा रहा हुं”।

इसके बाद मौलाना बरकतुल्लाह भोपाली का निधन हो चुका था, हिन्दुस्तान की आज़ादी का चमकता हुआ सितारा अपने वतन से दुर अमेरिका में डुब चुका था।
‘इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजिऊन’।