22 साल का दलित लड़का बना केरल के एक मंदिर का पुजारी, परीक्षा और इंटरव्यू से हुआ चयन

छह साल की उम्र में येदु कृष्णा ने थ्रिसार जिले में एक मंदिर में बतौर हेल्पर काम करना शुरू किया था। अब येदु कृष्णा को केरल के त्रावणकोर देवास्वम बोर्ड (टीडीबी) ने पहला दलित पुजारी चुना है।त्रावणकोर बोर्ड राज्य में एक हजार मंदिरों की देख-रेख करता है और उनके प्रशासन का काम भी इसी के जिम्मे है।

22 साल के कृष्णा, एर्नाकुलम में गुरूदेव वैदिक तंत्र विद्या पीठम के ब्रह्माश्री केके अनिरुद्ध तंत्री के शिष्य हैं और उनका चुनाव परीक्षा और इंटरव्यू से हुआ है। ये नियुक्ति सरकार की रिजर्वेशन पॉलिसी की तरह ही हुई है। एससी-एसटी और ओबीसी कैटेगरी का रिजर्वेशन 32 फीसदी है। इनमें से 36 पिछड़े वर्ग के हैं, जिन्होंने मेरिट लिस्ट में नाम दर्ज करवाया है।

पुजारी कृष्णा के गुरू अनिरुद्ध तंत्री ने कहा कि वह पहली बार कृष्णा से नालुकेट्ट श्रीधर्मा शास्त्र भद्रकाली मंदिर में मिले थे। तंत्री वहां पर आचार्य थे और एक मजदूर का लड़का कृष्णा वहां पर हेल्पर था। अनिरुद्ध तंत्री को बताया, ‘वह अनुशासित शिष्य था। उन्होंने कहा कि मैंने उससे कभी उसकी जाति नहीं पूछी। मैंने उससे पूछा कि क्या वह शांति पूजा सीखना चाहता है। वह राजी हो गया और मैं उसे अपने विद्या पीठ ले आया ।
वह कहते हैं, ‘उनकी विद्या पीठ 30 सालों से शांति पूजा सिखा रही है और इस बैच में 30 से ज्यादा विद्यार्थी हैं। वो हर जाति से आते हैं और उनके कई शिष्य राज्य और देश के दूसरे इलाकों में अलग-अलग मंदिरों में हैं। वह देवास्वम बोर्ड द्वारा कृष्णा की नियुक्ति को एक ऐतिहासिक   नियुक्ति मानते हैं।’ अनिरुद्ध तंत्री ने कहा, ‘कृष्णा जब विद्यापीठम में आया था, तब 12 साल का था और आज संस्कृति, व्यवहार, खान-पान और हर चीज में आज ब्राह्मण है।’

उन्होंने  कहा कि उन्हें कई लोगों से इस बात के विरोध की भी आशंका है कि गैर-ब्राह्मण लोग पुजारी कैसे बन सकते हैं और  उसकी नियुक्ति का विरोध भी हो सकता है।
अनिरुद्ध तंत्री ने कहा कि इसमें जातिवाद खत्म करने के लिए हर चुनौती से निपटने के लिए तैयार हैं। उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि ब्राह्मण आदमी अपने कर्म और ज्ञान से होता है, जन्म से नहीं।