निलंबित जेलर वर्षा डोंगरे ने फेसबुक पर लिखा एक और पोस्ट, मचा बवाल

सुकमा में २४ अप्रैल को हुए नक्सली हमले के बाद असिस्टेंट जेल सुपरिंडेंटेंट वर्षा डोंगरे ने अपने फेसबुक पर बस्तर में आदिवासियों के साथ हो अत्याचार के बारे में लिखा था। वर्षा ने जेल में आदिवासियों बच्चियों में साथ होने वाले बर्ताव का सच उजागर किया। जिसे लेकर राज्य सरकार पर काफी सवाल खड़े हो गए।
वर्षा डोंगरे को उनके फेसबुक पोस्ट के लिए पहले नोटिस जारी किया गया। अभी वर्षा ने इसका जवाब दिया भी नहीं था कि जेल प्रशासन ने उन्हें ससपेंड कर दिया।
वर्षा ने अपने निलंबन के संबंध में फेसबुक पर एक और पोस्ट लिखा। जोकि इस प्रकार है:

#मेरा निलंबन पत्र

 

केन्द्रीय जेल रायपुर में कल 8 मई को 5 दिन बाद मैं स्वस्थता के पश्चात ड्यूटी में उपस्थित हुई. मुझे निलंबन की फोटो कापी दी गई और कहा गया कि मूल कापी मेरे स्थायी गृह निवास कवर्धा भेज दिया गया है जो आजपर्यंत अप्राप्त है।

 

मेरे शासकीय आवास पर मैने देखा कि मेरे घर के दरवाजे पर निलंबन आदेश चस्पा कर दिया गया था. जिसे समाचार पत्रों में छपने के बाद फाड़ दिया गया है. जिसके कुछ अंश आज भी दरवाजे पर चिपके हुए हैं।

 

निलंबन आदेश के आरोप इस प्रकार हैं

 

‘कु. वर्षा डोंगरे, सहायक जेल अधीक्षक, केन्द्रीय जेल रायपुर द्वारा मीडिया में गैर-जिम्मेदारी तरीके से गलत एवं भ्रामक तथ्यों का उल्लेख करने एवं अनाधिकृत रूप से कर्तव्य से अनुपस्थित रहने के कारण उन्हे तत्काल प्रभाव से निलंबित किया जाता है। निलंबन काल में इनका मुख्यालय केंद्रीय जेल अम्बिकापुर रहेगा तथा इन्हे नियमानुसार निर्वाह भत्ते की पात्रता रहेगी।’

( गिरधारी नायक )
महानिदेशक
जेल एवं सुधारात्मक सेवाएं
छत्तीसगढ़ रायपुर

 

यह बेहद आश्चर्य का विषय है कि, प्रारंभिक जांच अधिकारी श्री आरआर राय जी को मेरे सोशल मीडिया पोस्ट की जांच प्रतिवेदन प्रस्तुत करने के लिए 07 दिवस दिया गया और राय जी के द्वारा मुझे 32 पेज का पुलिंदा थमाकर 02 दिवस के भीतर जवाब प्रतिवेदन मांगा गया। जिसके प्रतिउत्तर में मैने 376 पेज का जवाब भेज दिया था।

 

यह घोर आश्चर्य की बात है कि प्रारंभिक जांच अधिकारी के प्रतिवेदन और मेरे जवाब के पहले ही मान लिया गया कि मेरे पोस्ट के तथ्य गलत एवं भ्रामक हैं।

 

इससे यह स्पष्ट होता है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले, सीबीआई रिपोर्ट, राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग नई दिल्ली रिपोर्ट, भारत का राजपत्र, एक्सपर्ट ग्रुप आफ प्लानिंग कमीशन की रिपोर्ट इत्यादि जो कि मेरे जवाब पत्र में संलग्न है पर बिना विचार किए ही मेरे पोस्ट को… मीडिया में गैर-जिम्मेदार तरीके से गलत एवं भ्रामक तथ्यों का उल्लेख करने… का आरोप लगाते हुए निलंबित कर केन्द्रीय जेल अम्बिकापुर में अटैच कर दिया गया है।

 

हमारे द्वारा निलंबन के विरुद्ध संघर्ष संवैधानिक तरीके से लड़ी जाएगी।

हमारा अब भी भारत सरकार से विनम्र आग्रह है कि आदिवासी क्षेत्रों में 5 वीं अनुसूची के तहत व्यवस्था बहाल किया जाए।

आप सभी के समर्थन और साथ के लिए मैं हृदय से धन्यवाद ज्ञापित करती हूं।

 

#जय_जोहार…#जय_संविधान…#जय_भारतवर्ष…

 

गौरतलब है कि डोंगरे ने अपनी एक फेसबुक पोस्ट में राज्य के आदिवासियों की स्थिति, मानवाधिकार हनन और नक्सल समस्या को लेकर सरकार की भूमिका पर गंभीर सवाल उठाए थे। वर्षा डोंगरे को जिस फेसबुक पोस्ट के लिए पूरा विवाद हुआ वो इस प्रकार हैः

 

#पूंजीवादी #व्यवस्था #के #शिकार #जवान #शहीदों #को #सत #सत #नमन्मगर मुझे लगता है कि एक बार हम सभी को अपना गिरेबान झांकना चाहिए, सच्चाई खुदबखुद सामने आ जाऐगी… घटना में दोनों तरफ मरने वाले अपने देशवासी हैं…भारतीय हैं । इसलिए कोई भी मरे तकलिफ हम सबको होती है । लेकिन पूँजीवादी व्यवस्था को आदिवासी क्षेत्रों में जबरदस्ती लागू करवाना… उनकी जल जंगल जमीन से बेदखल करने के लिए गांव का गांव जलवा देना, आदिवासी महिलाओं के साथ बलात्कार, आदिवासी महिलाऐं नक्सली है या नहीं इसका प्रमाण पत्र देने के लिए उनका स्तन निचोड़कर दुध निकालकर देखा जाता है । टाईगर प्रोजेक्ट के नाम पर आदिवासियों के जल जंगल जमीन से बेदखल करने की रणनीति बनती है जबकि संविधान अनुसार 5 वी अनुसूची में शामिल होने के कारण सैनिक सरकार को कोई हक नहीं बनता आदिवासियों के जल जंगल और जमींन को हड़पने का…. 

आखिर ये सबकुछ क्यों हो रहा है । नक्सलवाद खत्म करने के लिए… लगता नहीं । सच तो यह है कि सारे प्राकृतिक खनिज संसाधन इन्ही जंगलों में है जिसे उद्योगपतियों और पूंजीपतियों को बेचने के लिए खाली करवाना है । आदिवासी जल जंगल जमींन खाली नहीं करेंगे क्योंकि यह उनकी मातृभूमि है । वो नक्सलवाद का अंत तो चाहते हैं लेकिन जिस तरह से देश के रक्षक ही उनकी बहू बेटियों की इज्जत उतार रहे हैं, उनके घर जला रहे हैं, उन्हे फर्जी केशों में चार दिवारी में सड़ने भेजा जा रहा है । तो आखिर वो न्याय प्राप्ति के लिए कहां जाऐ… ये सब मैं नहीं कह रही CBI रिपोर्ट कहता है, सुप्रीम कोर्ट कहता है, जमीनी हकीकत कहता है । जो भी आदिवासियों की समस्या समाधान का प्रयत्न करने की कोशिश करते हैं चाहे वह मानव अधिकार कार्यकर्ता हो चाहे पत्रकार… उन्हे फर्जी नक्सली केशों में जेल में ठूस दिया जाता है । अगर आदिवासी क्षेत्रों में सबकुछ ठीक हो रहा है तो सरकार इतना डरती क्यों है । ऐसा क्या कारण है कि वहां किसी को भी सच्चाई जानने के लिए जाने नहीं दिया जाता ।
मैनें स्वयं बस्तर में 14 से 16 वर्ष की मुड़िया माड़िया आदिवासी बच्चियों को देखा था जिनको थाने में महिला पुलिस को बाहर कर पूरा नग्न कर प्रताड़ित किया गया था । उनके दोनों हाथों की कलाईयों और स्तनों पर करेंट लगाया गया था जिसके निशान मैने स्वयं देखे । मैं भीतर तक सिहर उठी थी…कि इन छोटी छोटी आदिवासी बच्चियों पर थर्ड डिग्री टार्चर किस लिए…मैनें डाक्टर से उचित उपचार व आवश्यक कार्यवाही के लिए कहा ।

 

हमारे देश का संविधान और कानून यह कतई हक नहीं देता कि किसी के साथ अत्याचार करें…।

 

इसलिए सभी को जागना होगा… राज्य में 5 वी अनुसूची लागू होनी चाहिए । आदिवासियों का विकास आदिवासियों के हिसाब से होना चाहिए । उन पर जबरदस्ती विकास ना थोपा जावे । आदिवासी प्रकृति के संरक्षक हैं । हमें भी प्रकृति का संरक्षक बनना चाहिए ना कि संहारक… पूँजीपतियों के दलालों की दोगली नीति को समझे …किसान जवान सब भाई भाई है । अतः एक दुसरे को मारकर न ही शांति स्थापित होगी और ना ही विकास होगा…। संविधान में न्याय सबके लिए है… इसलिए न्याय सबके साथ हो…

 

हम भी इसी सिस्टम के शिकार हुए… लेकिन अन्याय के खिलाफ जंग लड़े, षडयंत्र रचकर तोड़ने की कोशिश की गई प्रलोभन रिश्वत का आफर भी दिया गया वह भी माननीय मुख्य न्यायाधीश बिलासपुर छ.ग. के समक्ष निर्णय दिनांक 26.08.2016 का para no. 69 स्वयं देख सकते हैं । लेकिन हमने इनके सारे ईरादे नाकाम कर दिए और सत्य की विजय हुई… आगे भी होगी ।
अब भी समय है…सच्चाई को समझे नहीं तो शतरंज की मोहरों की भांति इस्तेमाल कर पूंजीपतियों के दलाल इस देश से इन्सानियत ही खत्म कर देंगे ।

 

ना हम अन्याय करेंगे और ना सहेंगे….

जय संविधान जय भारत