मोदी सरकार की मौजूदा हालात को देखते हुए देश के सबसे बड़े मुस्लिम संगठन जमियत-उलेमा-ए-हिन्द ने एक बयान जारी कर चेतावनी दी है कि असम को म्यांमार बनाने की कोशिश न की जाए। संगठन ने यह बात इसलिए कहा है कि असम में मुस्लिमों की नागरिकता को लेकर अभी भी सवालिया निशान बरक़रार है। राज्स में मुस्लिमों की नागरिकता के हक के लिए असम एक्शन कमेटी की लड़ाई अब भी जारी है।
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संगठन के अध्यक्ष मौलाना अर्शद मदनी ने एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मीडिया से बातचीत के दौरान कहा कि राज्य की वोटिंग रजिस्ट्री से 48 लाख शादीशुदा मुस्लिम महिलाओं का नाम हटाने की कोशिश की जा रहे है, ताकि उनके हक को छीना जा सके, उनके बच्चे अनपढ़ रह सके और उन्हें देश से बाहर फेंक दिया जाए। उनहोंने कहा कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो असम में म्यांमार जैसी स्थिति बन जाएगी।
जहां एक तरफ यह कहा जा रहा कि राज्य में नेशनल रजिस्ट्री ऑफ सीटिजन्स का कार्य चल रहा है, तो वहीं दूसरी तरफ गुवाहाटी हाईकोर्ट ने 48 लाख मुस्लिम महिलाओं की नागरिकता को संकट में डाल दिया है। हाईकोर्ट के इस फैसले पर मौलाना मदनी ने कहा वे इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएंगे।
हालांकि हाईकोर्ट इन महिलाओं के इस प्रमाणपत्र को अवैध करार दे चुका है जिसके बाद राज्य में मुस्लिम महिलाएं नागरिकता के हक के लिए लड़ाई लड़ रही हैं। मदनी ने कहा कि सरकार को बहुत ही गंभीरता के साथ असम समझौते और नियम-कानून को फॉलो करना चाहिए।
बता दें कि राज्य में पूर्ण रूप से शिक्षा न मिलने और गरीबी के कारण मुसलमानों की तादाद बहुत अधिक है। यही कारण है कि वहां के लोग अपना बर्थ सर्टिफिकेट नहीं बनवाते है और अगर किसी मुस्लिम लड़की की शादी के वक्त गांव का प्रधान जो प्रमाणपत्र देता है तो उसी को नागरिकता का सबूत माना जाता है।