नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश में आरटीई एक्ट 2009 का हवाला देकर सरकारी विभाग की ओर से दीनी मदरसों को तुरंत बंद करने का नोटिस दिया जा रहा है। यह मामला तब सामने आया जब कुछ मदरसों के ज़िम्मेदारों ने जमीअत उलमा ए हिंद के महासचिव मौलाना महमूद मदनी से संपर्क करके मदद की गुज़ारिश की।
यहां जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि जमीअत उलेमा ए हिंद के हेड ऑफिस को नोटिस की कुछ प्रतियां प्राप्त हुई, जिनके अनुसार यह मामला बाराबंकी जिले का है। जहां मदरसा हफ्सा लिलबनात ननदोरा और मदरसा सिराज उलूम कतोरी कलां के ज़िम्मेदारों को ब्लाक एजुकेशनल अधिकारी ने आरटीई एक्ट अध्याय 4 की धारा19-1 का हवाला देकर आदेश दिया है कि त्वरित रूप से अपनी शिक्षण केन्द्रों को बंद करें, और इसकी जानकारी ब्लोक अधिकारी संदीप कुमार वर्मा को दें।
नोटिस में उक्त अधिनियम के हवाले से यह भी कहा गया है कि अगर कोई गैर मान्यता प्राप्त संस्थान चलाता है तो उसे एक लाख रुपये तक जुर्माना देना होगा, इसके अलावा कानून उल्लंघन के मामले में दस हजार रोजाना के तौर पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
इन मामलों के सामने आने के बाद जमीअत उलेमा ए हिंद के महासचिव मौलाना महमूद मदनी ने कड़ी चिंता जताई है। मौलाना मदनी ने कहा कि आरटीई संशोधन अधिनियम निर्देश 2012 के बावजूद मदरसों को यह नोटिस जारी किया जाना मिल्लते इस्लामिया को महज चिन्ता में डालने की साजिश है। जमीअत इसे सफल नहीं होने देगी।
मौलाना मदनी ने कहा कि जब 2010 में यह अधिनियम लागू हुआ तो विभिन्न वर्गों द्वारा चिंता ज़ाहिर किया गया था, जमीअत उलेमा ए हिंद ने इस संबंध में शिक्षा मंत्री कपिल सिब्बल से मुलाकात की और मदरसों से संबंधित चिंताओं को दूर करने के लिए अनुरोध किया। जिसके बाद शिक्षा मंत्री कपिल सिब्बल ने हमारी मांगों के आलोक में मदरसों और धार्मिक शिक्षण संस्थानों को मुक्त कर दिया, जो आरटीई एमडमेंट एक्ट 2012 के नाम से मौजूद है। जो धारा 1 खंड 5 में साफ लिखा है कि इस कानून की कोई बात मदरसों, वैदिक पाठशालाओं और मूल रूप से धार्मिक शिक्षा मुहैया कराने वाले शैक्षिक संस्थानों पर लागू नहीं होगी।
मौलाना मदनी ने साफ किया कि कोई व्यक्ति या संस्था देश के कानून से बढ़कर नहीं है, इसलिए धार्मिक संस्थानों को परेशान करने की कोशिश का हर स्तर पर मुक़ाबला किया जाएगा।