नफऱत का बीज धीरे धीरे मुल्क़ और लोगों के दिलों में धसता जा रहा है। अगर इस बीज को यूं ही खाद पानी मिलता रहा तो वो दिन दूर नही जब हम पाकिस्तान, इराक़ से हो जाएं।
दरअसल ये जो नई पौध है इन्होंने असल हिंदुस्तान देखा ही नहीं है। ये फेसबुक और व्हाट्सप्प से देश और धर्मों को देख समझ रहे हैं। इन्होंने देखा ही नही कि कैसे मंदिर ओर मज़ार एक जगह बनी रहती हैं। किसी को किसी से दिक्कत नही। सब अपनी अपनी इबादत करते हैं। इन्होंने देखा ही नहीं} कि अब तक किसी को ना अज़ान से दिक्कत थी ना आरती से। अज़ान हो तो मंदिर का माइक बंद हो जाये और आरती में सब श्रद्धा से खड़े हो जाएं।
सियासत के लिए धर्म को चरस अफीम से खतरनाक कर दिया है। नशा इंसान को ख़त्म करता है लेकिन कट्टरता देश को संस्कृति को। हमारे शहर में ईद मिलादुन्नबी के दिन बड़ा जुलूस निकलता था जिसमें सब शामिल होते थे। धीरे धीरे वो जुलूस खुशी का नही शक्ति प्रदर्शन का जरिया बन गया।
फिर दूसरों ने सोचा हम क्यों पीछे रहें वो भी आ गए मैदान में । राम नवमीं के दिन निकलने वाली शोभा यात्रा भी शक्ति प्रदर्शन का जरिया बन गई। शहर दो रंगों में बंट गया। ईद पर मुस्लिम बहुत इलाक़ों में हरा रंग ओर राम नवमीं या दूसरे त्योहारों पर केसरिया।
मुझे किसी भी मज़हब से कोई दिक्कत नही लेकिन अब मज़हब घरों से निकलकर दूसरों को नीचा ओर कमतर दिखाने का जरिया बन रहे हैं। नए-नए लड़के नफऱत से भरे हुए हैं। वो हिंदुस्तान की बात नही करते। कोई मुल्क़ से पहले मज़हब की बात करता है तो कोई हिंदू राष्ट्र की।
क्या इन्हें हम उस हिंदुस्तान की तस्वीर झलक नही दिखा सकते जिसमें हम जी चुके हैं। निदा मेघा ये साथ होली खेलती है तो रवि निदा रहमान के साथ रोज़ा भी रख लेता है। नफऱत से भरे नौजवानों को दिखाना होगा कि धर्मनिरपेक्षता गाली नही है, भ्र्म ओर धोखा भी नही है। ये रूह है हिंदुस्तान की।
हरे केसरिया रंग और चेहरे पर गुस्सा उन्माद लिए हुए लोगों तुम देखो अब तक जिंदा है हिंदुस्तान। सत्ता के लिए धर्म का तेज़ाब ना इस्तेमाल करो वरना आने वाली नस्लें पैदा होने से पहले मार डीं जाएंगी।
मुझे खुशी है कि मेरे ज़िंदगी में कुछ दोस्त ऐसे हैं जो हिन्दू मुस्लिम से बहुत आगे हैं। हमें आने वाली पीढ़ी की अपनी यही विरासत देके जाना है।
(निदा रहमान की फेसबुक वॉल से)