दहेज उत्पीड़न मामले में आरोप की पुष्टी से पहले नहीं होगी गिरफ्तारीः SC

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को दहेज निरोधक कानून धारा 498-ए के दुरुपयोग पर चिंता जताते हुए यह निर्देश दिया है कि आरोपों की पुष्टी के बग़ैर कोई गिरफ्तारी नहीं होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दहेज प्रताड़ना मामले पर निगरानी के लिए हर जिले में एक परिवार कल्याण समिति बनाई जाए और समिति की रिपोर्ट आने के बाद ही गिरफ्तारी होनी चाहिए।

राजेश शर्मा नाम के एक व्यक्ति की इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश के ख़िलाफ़ डाली गई याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट में ने यह टिप्पणी भी की कि ऐसे मामलों में ज़्यादातर शिकायतें सही नहीं होती हैं और अनावश्क गिरफ़्तारी समझौते की संभावनाओं को खत्म कर सकती है।

जस्टिस एके गोयल और यूयू ललित की की पीठ ने इस बात का भी ज़िक्र किया कि शीर्ष अदालत ने पहले भी इस प्रावधान की गंभीरता से समीक्षा की आवश्यकता बताई थी और कहा था कई बार इस तरह की शिकायतें न सिर्फ आरोपी बल्कि शिकायतकर्ता के लिये भी परेशान का सबब बन जाती हैं।

पीठ ने कहा, ‘हम उस उद्देश्य के प्रति सचेत हैं जिसके लिए यह प्रावधान क़ानून में शामिल किया गया था। साथ ही निर्दोष के मानवाधिकारों के उल्लंघन को भी दरकिनार नहीं किया जा सकता है। यह न्यायालय अनावश्यक गिरफ़्तारी या संवेदनहीन जांच के प्रति कुछ सुरक्षा उपायों पर गौर कर चुका है। अभी भी यह समस्या काफी हद तक बदस्तूर जारी है।

हालांकि न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि ये निर्देश शारीरिक हिंसा या मृत्यु से संबंधित अपराधों के मामले में लागू नहीं होंगे। यानी अगर महिला घायल हो जाती है या उसकी मौत हो जाती है, तब नए निर्देश को नहीं माना जाएगा और तुरंत गिरफ़्तारी होगी।

अदालत ने कहा कि यह क़ानून महिलाओं पर हो रहे अत्याचार रोकने के लिए बनाया गया था और इस क़ानून के तहत बड़ी संख्या में मुक़दमे दर्ज़ हो रहे हैं, इसलिए इससे सिविल सोसाइटी को भी जोड़ा जाना चाहिए।