चिकित्सा क्षेत्र में वर्ष 2016 का नोबेल पुरस्कार जापान के योशीनोरी ओहसुमी को ऑटोफेगी में उनकी खोज के लिए दिया गया था। ये पुरस्कार उन्हें कोशिकीय तत्वों के टूटने और दोबारा बनने की प्रणाली खोजने के लिए दिया गया।
जापान में 9 फरवरी 1945 को पैदा हुए योशीनोरी ओहसुमी को ‘ऑटोफेजी’ से संबंधित उनके काम के लिए नोबेल चिकित्सा पुरस्कार मिला। ऑटोफैजी एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें कोशिकाएं ‘खुद को नष्ट करती हैं’ और उन्हें बाधित करने पर पार्किंसन एवं मधुमेह जैसी बीमारियां हो सकती हैं।
1960 के दशक में ऑटोफैजी की अवधारणा उभरी लेकिन जब तक ओहसुमी ने 80 के उत्तरार्ध में इसका अध्ययन शुरू नहीं किया तब तक वास्तविक प्रगति नहीं हुई थी। उन्होंने न केवल यह दिखाया कि खमीर में ऑटोफैजी प्रक्रिया मौजूद है बल्कि पाया कि प्रक्रिया को कैसे नियंत्रित किया जाता है, यह कैसे शुरू से खत्म होता है और मुख्य जीन और अणु शामिल होते हैं।
ओहसुमी विभिन्न शोध क्षेत्रों में सक्रिय थे, लेकिन 1988 में अपनी प्रयोगशाला शुरू करने के बाद उन्होंने वैक्यूल में प्रोटीन अवक्रमण पर अपने प्रयासों पर ध्यान केंद्रित किया। 71 वर्षीय ओहसुमी को “ऑटोफैजी के लिए तंत्र” को उजागर करने के लिए प्रतिष्ठित पुरस्कार भी मिला।