गैर-मुस्लिम शरणार्थियों की देश की नागरिकता से सम्मानित

केंद्रीय सरकार ने देश के नागरिकता कानून में बदलाव करने की गर्ज़ से जुलाई 2016 में संसद में एक बिल पेश किया था जिसका मकसद मुस्लिम बहुमत वाले तीन पड़ोसी देशों अफगानिस्तान, पाकिस्तना और बांग्लादेश से गैर कानूनी तौर पर उत्तर पूर्व की राज्यों में आ बसने वाले गैर मुस्लिम शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता से सम्मानित करना था।

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यह बिल अभी पास नहीं हुआ है और इस महीने में होने वाले संसद के मानसून सत्र में उसे पास करवाने की कोशिश की जायेगी या नहीं। यकीनी तौर पर नहीं कहा जा सकता क्योंकि फ़िलहाल तो केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी के नसों पर आगले साल होने वाल आम चुनाव का भूत सवार है और राज्य की दुनिया में तयशुदा नीतियों को राजनीतिक मसलेह्तों से हमेशा लंबित रखने का आम परंपरा है।

चुनावी मौसमों की जगमगाहट इस कदर दिलफरेब हैं कि राजनेताओं की नजरें सिर्फ अपनी जीत पर अड़ जाती हैं जिस के लिए यह फैसला करने के उनके अपने खास पैमाने होते हैं कि कहाँ से बच निकलना है कहाँ जाना जरूरी है।आज़ादी के बाद देश की नागरिकता का कानून सबसे पहले नये सिरे से दर्ज संविधान के दुसरे अध्याय में शामिल किया गया था जिसकी पहली धारा की रू से उन सभी भारतीय मूलों को देश का नागरिक स्वीकार किया गया था जो खुद या जिनके मां या बाप भारत की सरजमीं में पैदा हुए थे या संविधान के लागू से कमसे कम पांच साल पहले से इस देश में आम तौर पर रह रहे थे।