‘दिन भर में एक पल भी ऐसा नहीं ग़ुज़रता, जब वो सामने हो और मैं उसे न देखूं’

मैं अकसर ये सोचा करता हूं, काश उसे बता पाऊं कि वो कितनी सुंदर है। अहसास कराऊं कि उसे जीवनसाथी, दोस्त, पत्नी के रूप में पाकर मैं दुनिया का सबसे ख़ुशनसीब इंसान हूं।

जब भी उसे देखता हूं उससे फिर से प्यार हो जाता है। पिछले 14 सालों से मैं हर लम्हा उसके इश्क़ में गिरफ़्तार हो रहा हूं। हर सुबह उससे फिर, फिर से प्यार होता है। हर दिन मैं ख़ुद ही से उसकी ख़ूबसूरती के बारे में बतियाता हूं।

हर दिन उसे पहले से ज़्यादा चाहता हूं। दिन भर में एक भी लम्हा ऐसा नहीं ग़ुज़रने देता, जब वो सामने हो और मैं उसे न देखूं। उसे मेरी सब बातें बावली सी लगती हैं और वो उन्हें सीरियस नहीं लेती। दिन भर तपती धूप में हम साथ काम करते हैं। वो लगातार कहती है अब वो ख़ूबसूरत नहीं है। उसका रंग दिन ब दिन सांवला और वो बदसूरत होती जा रही है। उसकी ये बातें मुझे बेतुकी नज़र आती हैं, गुस्सा भी आता है।

उसके बात करने का अंदाज़, मुस्कान, चेहरे के हाव-हाव, हर अदा निराली है। हाथों की छुअन, हंसी की गूंज मुझे उसकी ओर खींचती है। मुझे सबसे ज़्यादा ख़ूबसूरत लगते हैं उसके पांव. जिन्हें वो मुझे छूना तो दूर जी भर के निहारने भी नहीं देती। उसे लगता है, उसके पांव उतने ख़ूबसूरत नहीं, जितने मैं क़सीदे पढ़ता रहता हूं।

पिछले 14 सालों में उसके साथ ने इस क़दर पूरा किया है कि मुझे किसी दोस्त की कमी महसूस नहीं हुई। जब वो मुझे छोड़ के मायके जाती है उन चंद दिनों में ही उसका साथ न होना मुझे झकझोर देता है। उसके साथ की इस क़द्र आदत है कि उसकी ग़ैरमौजूदगी में आंखें भर आती हैं।

वो वापस आती है तो उसे फिर से देखने पर ख़ुशी से रो देता हूं। उसे पास पाकर फिर से जीवन समाता है मुझमे। जब जब वो मुझे उसके लिए रोता देखती है तो कहती है कि मैं बावला हो गया हूं। समझाती है, मैं इस बावले पती के बग़ैर कभी भी, कहीं भी नहीं जाऊंगी।

 

इन 14 सालों में हमारे बच्चा नहीं हुआ, लेकिन हम अधूरे नहीं है। ख़ाली गोद के लिए हमने कभी ख़ुदा का नाशुक्री नहीं की। एक-दूसरे का साथ बनाए रखने के लिए हमेशा उसका शुक्रिया अदा किया।

(अब्दुल सोभन और रसीदा बेग़म की कहानी)

साभार- न्यूज़18 इंडिया