नजरिया : नागरिक और अनागरिक

अभी असम में पैदा हुई असाधारण स्थिति से निपटने के लिए काफी सूझ-बूझ और धैर्य की जरूरत है। राज्य में नागरिकता की लिस्ट जारी कर दी गई है। नैशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजनशिप (एनआरसी) के मुताबिक असम में रहने वाले 2.89 करोड़ लोग वैध नागरिक हैं लेकिन वहां रह रहे 40 लाख लोगों की नागरिकता सिद्ध नहीं हो पाई है।

इन लोगों को अपनी नागरिकता साबित करने का एक मौका और दिया जाएगा लेकिन सवाल यह है कि जब तक इस मामले में दुविधा बनी हुई है, तब तक इनका क्या होगा। प्रश्न यह भी है कि राज्य मशीनरी इनके साथ कैसा सलूक करे। डर है कि इनकी संदिग्ध नागरिकता का कहीं स्वार्थी तत्व गलत फायदा न उठा लें और ये उनके दुर्व्यवहार और हिंसा के शिकार न हो जाएं।

या फिर खुद यही लोग किसी उकसावे में आकर कोई गलत कदम न उठा लें। एनआरसी में यह आश्वासन दिया गया है कि जो लोग वैध नागरिक नहीं पाए जाते हैं, उन्हें भी निर्वासित नहीं किया जाएगा। लेकिन बात सिर्फ इतनी नहीं है। उनकी नागरिकता पक्की नहीं है, इस आधार पर कहीं उन्हें निचली राज्य मशीनरी द्वारा मिलने वाली सुविधा-सुरक्षा से वंचित न कर दिया जाए।

जब तक इन लोगों के बारे में कोई अंतिम फैसला न हो जाए, तब तक उन्हें हर दृष्टि से असम का नागरिक ही माना जाना चाहिए। सचाई यह है कि इन 40 लाख में कई लोग ऐसे भी होंगे जो सिर्फ जरूरी कागजात न दिखा पाने के कारण नागरिकता सूची में न आ पाए होंगे। ऐसी शिकायतें बड़े पैमाने पर आई हैं। कई संगठनों ने एनआरसी को अपडेट करने की प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए इसके विभिन्न प्रावधानों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की हैं।

राज्य सरकार ने एक विशेष फॉर्म जारी करने का फैसला किया है जिसके जरिए एनआरसी में न आ पाए लोग दोबारा इसके लिए अपनी दावेदारी पेश कर सकेंगे। सरकार ने उन्हें हर तरह की तकनीकी मदद देने का आश्वासन भी दिया है। असम में स्थानीय बनाम विदेशी नागरिकों का मुद्दा राज्य के सामाजिक-राजनीतिक जीवन को अरसे से झकझोरता रहा है।

असमिया लोगों की शिकायत रही है कि बांग्लादेश से बड़ी संख्या में आकर लोग उनके यहां बस गए हैं, जिससे राज्य की सामाजिक संरचना बिगड़ने लगी है। यह भावना कई शांतिपूर्ण और हिंसक आंदोलनों में व्यक्त होती रही है। 1980 के दशक में ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) की अगुआई में हुए छात्र आंदोलन में यह मुद्दा बड़े पैमाने पर उठा। आखिरकार 2005 में केंद्र, राज्य सरकार और आसू के बीच असमिया नागरिकों का कानूनी दस्तावेजीकरण करने के मुद्दे पर सहमति बनी और अदालत के हस्तक्षेप से इसे एक व्यवस्थित रूप दिया गया।

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर ही एनआरसी, 1951 को अपडेट किया गया है। उम्मीद करें कि सभी पक्ष पर्याप्त धैर्य का परिचय देंगे और राज्य शांतिपूर्ण ढंग से अपनी इस समस्या का समाधान कर सकेगा।
(साभार : नवभारत टाइम्स)