लाखों फलस्तीनी शरणार्थियों को जॉर्डन या अन्य देशों के पासपोर्ट पर करना पड़ता हैं हज, सऊदी अरब नहीं देती है इजाजत!

सऊदी प्रशासन का कहना है कि वह हज व उमरह के मामलों की संस्था में कभी हस्तक्षेप नहीं करता और इसे रेड लाइन समझता है जिसे किसी भी अरब या इस्लामी सरकार अथवा संस्था को पार नहीं करना चाहिए इसलिए कि इस रेड लाइन को पार करना सऊदी अरब की राष्ट्रीय प्रभुसत्ता पर हमला है।

मगर दूसरी ओर यही सऊदी प्रशासन बार बार एसे क़दम उठाता है जिनसे वह अनेक देशों के नागरिकों को हज और उमरह करने से वंचित कर देता है और जो कारण बताता है वह किसी के भी समझ में आने वाला नहीं होता। इस बार सऊदी अरब के इसी प्रकार के निर्णय का निशाना फ़िलिस्तीनी बने हैं जो अस्थायी जार्डनियन पासपोर्ट पर हज एवं उमरह करने जाते हैं।

सऊदी अरब की सरकार ने सात साल तक लाखों सीरियाई नागरिकों को हज और उमरह से वंचित रखा क्योंकि वह सीरियाई सरकार के साथ कोई भी काम नहीं करना चाहती और सीरियाई सरकार को गिराने की कोशिश में है। सऊदी सरकार ने केवल उन सीरियाई नागरिकों को वीज़ा दिया जो बाग़ी संगठनों के समर्थक थे।

जार्डन और फ़िलिस्तीन की ट्रैवेल एजेंसियों में काम करने वालों ने सोमवार को बताया कि अब सऊदी अरब ने ग़ज़्ज़ा पट्टी, बैतुल मुक़द्दस तथा पश्चिमी तट में रहने वाले फ़िलिस्तीनियो को भी हज व उमरह का वीज़ा देने से इंकार कर दिया है इसी तरह उन फ़िलिस्तीनियों को भी हज और उमरह से रोक दिया है जिनके पास जार्डन का दो साल की अवधि वाला अस्थायी पास्पोर्ट हो।

लेबनान में विधि संस्थाओं ने सऊदी अरब के दूतावास के ख़िलाफ़ अदालत में शिकायत की कि उसने फ़िलिस्तीनी प्रशासन की ओर से जारी किए जाने वाले पासपोर्ट धारक फ़िलिस्तीनी शरणार्थियों को वीज़ा देने से इंकार कर दिया है इसका मतलब यह है कि तीन लाख फ़िलिस्तीनी जो लेबनान में रहते हैं हज और उमरह के लिए सऊदी अरब नहीं जा सकेंगे।

सीरिया, लेबनान और जार्डन में फ़िलिस्तीनी मामलों पर नज़र रखने वाले विशेषज्ञों का कहना है कि सऊदी अरब ने अमरीका की योजना के तहत यह क़दम उठाया है जो फ़िलिस्तीनियों को शरणार्थी होने के नाते हासिल अधिकारों से वंचित करना चाहता है।

अमरीका चाहता है कि इन्हें शरणार्थी न कहा जाए ताकि यह विचार सबके मन से निकल जाएं कि वह किसी अन्य देश यानी फ़िलिस्तीन के निवासी हैं और उन्हें अपने देश लौटने का अधिकार है। अमरीका ने इसीलिए संयुक्त राष्ट्र संघ की संस्था अनरवा पर भी प्रहार किया और उसको दी जाने वाली आर्थिक सहायता रोक दी क्योंकि वह फ़िलिस्तीनी शरणार्थियों के अधिकारों के लिए काम करती थी।

यह संस्था फ़िलिस्तीनियों के स्वदेश वापसी के अधिकार को प्रतिबिंबित करती थी और पचास लाख से अधिक फ़िलिस्तीनी शारणार्थियों के लिए काम कर रही थी।

संयुक्त राष्ट्र संघ की मानवाधिकार परिषद में सऊदी अरब की प्रतिनिधि टीम के अध्यक्ष बंदर अलईबान ने सोमवार को कहा कि उनका देश किसी भी मुसलमान को हज और उमरह करने से नहीं रोकता बल्कि उसने हमेशा बिना किसी भेदभाव के सबको पवित्र स्थलों की ज़ियारत की अनुमति दी है, मगर हमने जो उदाहरण पेश किए हैं वह सऊदी अरब के प्रतिनिधि के इस दावे की हवा निकाल देने के लिए काफ़ी हैं।

हमें यह डर है कि सऊदी अरब ने जार्डन, बैतुल मुक़द्दस, पश्चिमी तट, ग़ज़्ज़ा पट्टी, लेबनान और सीरिया में रहने वाले लाखों फ़िलिस्तीनियों को हज और उमरह से वंचित रखने का फ़ैसला कहीं डील आफ़ सेंचुरी के तहत तो नहीं किया है जिसका लक्ष्य फ़िलिस्तीन मुद्दे को हमेशा के लिए मिटा देना है और विशेष रूप से फ़िलिस्तीनी शरणार्थियों से उनका स्वदेश वापसी का अधिकार छीन लेना है।

इस संवेदनशील मामले में हम इससे ज़्यादा नहीं पड़ना चाहते, हम यह आरोप इसलिए लगा रहे हैं ताकि इस पर सऊदी प्रशासन की ओर से औपचारिक जवाब आए जिसमें इस मामले को स्पष्ट किया जाए मगर साथ ही साथ हम इस फ़ैसले को तो सिरे से ख़ारिज करते हैं जिससे किसी भी देश के नागरिक को मक्का और मदीना जाने तथा हज और उमरह अदा करने के अधिकार से वंचित किया जाए।

साभार- ‘parstoday.om’