आंकड़ा : इज़राइली स्नाईपरों का टार्गेट पॉड फिलिस्तीनी बॉडी

गाज़ा : नकबा यानि विनाश के दिन की शुरुआत 1998 में फ़लस्तीनी क्षेत्र के तब के राष्ट्रपति यासिर अराफ़ात ने की थी. इस दिन फ़लस्तीन में लोग 14 मई 1948 के दिन इसराइल के गठन के बाद लाखों फलस्तीनियों के बेघर बार होने की घटना का दुख मनाते हैं.

14 मई 1948 के अगले दिन साढ़े सात लाख फ़लस्तीनी, इसराइली सेना के बढ़ते क़दमों की वजह से घरबार छोड़ कर भागे या भगाए गए थे. कइयों ने ख़ाली हाथ ही अपना घरबार छोड़ दिया था. कुछ घरों पर ताला लगाकर भाग निकले. यही चाबियां बाद में इस दिन के प्रतीक के रूप में सहेज कर रखी गईं.” 15 मई 1948 को कई लोग अपने घरों में ताला लगाकर भागे थे. उन्हें वापस लौटने की उम्मीद थी.

लेकिन इसराइल इस कहानी को नहीं मानता. उसका दावा है कि फ़लस्तीनी लोग उनकी वजह से नहीं बल्कि मिस्र, जॉर्डन, सीरिया और इराक़ के हमले की वजह से भागे थे क्योंकि इन देशों की सेनाएं यहूदी जीत को रोकना चाहती थीं. जब ये संघर्ष ख़त्म हुआ तो इसराइल ने फ़लस्तीनियों को वापस नहीं लौटने दिया. उसका तर्क था कि उन मकानों के मालिक ग़ैर हाज़िर हैं इसलिए उन्हें ज़ब्त करना वाजिब है.

इसके बाद संयुक्त राष्ट्र ने पड़ोसी देशों की सीमाओं पर कई रिफ़्यूजी कैंप खोल दिए. इनमें से कुछ पूर्वी यरूशलम में भी थे, लेकिन तभी से दोनों पक्षों के बीच तनाव और संघर्ष जारी है.