दलितों का प्रदर्शन, एक ज्वालामुखी था जो फट गया

2 अप्रैल का दिन देश की इतिहास में अपने काले निशान छोड़ गया। उस दिन पूरे देश में दलित प्रदर्शन कर रहे थे, कहीं बस जले, मार्च हो रहे थे, तो कहीं झडप, कहीं पत्थरबाज़ी हो रही थी तो कहीं तोड़ फोड़ और आगजनी के घटने, कहीं पुलिस के मनोबल टूट रहा था तो कहीं फायरिंग, नतीजा यह हुआ कि इस बीच लगभग 10 लोगों की जान चली गई। दलित संगठनों ने सिर्फ सोशल मीडिया के जरिए सोमवार के दिन भारत बंद की अपील की थी।

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इस भारत बंद की वजह तो ज़ाहिरी तौर पर सुप्रीम कोर्ट का वह हालिया फैसला था ज्सिमें सालों से लागु एस,एसटी एक्ट में बदलाव की गई है, लेकिन इस गुस्से के पीछे कई अन्य वजहें भी थीं। दलित वर्ग एससी/एसटी एक्ट में बदलाव को उन अधिकार का उल्लंघन और शोषण के रस्ते खोलने वाला बताया जा रहा है। लिहाज़ा जिस तरह देश की अन्य राज्यों में सडकों पर दलितों का गुस्सा निकला वह किसी ज्वालामुखी के फटने के बराबर ही था। इस बड़े पैमाने पर प्रदर्शन की जमीन एक दिन में ही तैयार नहीं हो गई थी।

उसके पीछे वह सभी प्रक्रिया प्रतिक्रिया में बदल गई थी, जो पिछले कुछ सालों के बीच दलितों पर अत्याचार की नई दास्तान लिख रहे हैं। जिस तरह एक ज्वालामुखी पहले अंदर ही अंदर उबलता रहता है और जब उसमें आग की तरह मौजूद चीज़ बेकाबू हो जाता है तो एक फट पड़ता है। २ अप्रैल को कुछ ऐसा ही हुआ।