नजरिया: 2019 को लेकर चाणक्य के माथे पर पसीने की लकीरें

2019 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर विपक्षी पार्टियों के दिन बदिन मजबूत होते हुए गठबंधन, हालिया उपचुनाव में इस गठबंधन के हाथों बुरी हार, कर्नाटक में सरकार बनाने में नाकामी और शिवसेना, जेडीयू और अकाली दल जैसे गठबंधन की नाराज़गी ने सत्ताधारी भाजपा के खेमे में पेशानी पर फ़िक्र की लकीरें साफ़ कर दी हैं और उनमें मुर्ग बिस्मिल जैसी तड़प स्पष्ट दिखाई देने लगी है।

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2014 के लोकसभा चुनाव में अलग अलग लड़े विपक्षी दलों ने संयुक्त रूप से 69 फीसद और भाजपा ने सिर्फ 31 फीसद वोट हासिल किए थे। अलग अलग 69 फीसद पर 31 फीसद जनता का समर्थन भारी पड़ी थी, जीके नतीजे में भाजपा ने केंद्र में मजबूत सरकार स्थापित कर ली थी। अब विपक्षी पार्टियों के बीच गठबंधन के बढ़ते हुए आशंका से भाजपा का फिक्रमंद होना आवश्यक है, क्योंकि इस गठबंधन के नतीजे में 2019 की तस्वीर 2014 के मुकाबले बिलकुल विपरीत हो सकती है।

भाजपा के सहयोगी पार्टियों को हवा के रुख का भी अंदाज़ा हो रहा है, जो सत्तारूढ़ पार्टी के पक्ष में बहती हुई बिलकुल नजर नहीं आ रही है। वह यह भी महसूस कर रही हैं कि प्रधानमंत्री, जिनकी शोहरत छप्पन इंच सीना रखने वाले कद्दावर, मजबूत नेता के तौर पर है, एक नाकाम प्रधानमंत्री साबित हुए हैं, और उनकी मकबूलियत पहले के मुकाबले बहुत कम हो गई है।