सबरा नरसंहार: जब इज़राइलियों ने फलस्तीनी महिलाओं से रेप किया और 4 हजार लोगों को मारा

बेरूत : गाज़ा में इज़रायल द्वारा किये जा रहे बर्बर नरसंहार पर मुख्‍यधारा की मीडिया ने एक षडयंत्रकारी चुप्‍पी ओढ़ ली है। परन्‍तु सोशल मीडिया के ज़रिये पूरी दुनिया में इज़रायल के कहर की तस्वीरें पहुँच रही हैं जो इज़रायल द्वारा किये जा रहे मानवता के खिलाफ जघन्‍य अपराध को सामने ला रही हैं। इज़राइल के मामले में कुछ लोगों का कहना है कि अपने देश की समस्‍याओं की बजाय किसी दूसरे देश की समस्‍या को इतना तूल देना उचित नहीं है। वहीं कुछ लोग यह भी कहते हैं कि इज़रायल यह सबकुछ आत्‍मरक्षा में कर रहा है।

जो लोग इस बर्बरता को किसी दूसरे देश की समस्‍या बता रहे हैं उनसे पूछा जाना चाहिए कि न्‍याय-अन्‍याय, बर्बरता, जनसंहार जैसे मुद्दे भला कब से राष्‍ट्र-राज्‍यों के संकुचित दायरे के भीतर देखे जाने लगे! ऐसे लोगों की तर्कपद्धति पर सवाल उठाते हुए पूछा जाना चाहिए कि हीरोशिमा-नागासाकी, सबरा और शातिला जैसे नरसंहारों की जघन्‍यता को भी राष्‍ट्रीय चश्‍में से देखना क्‍या संकीर्णता और संवेदनहीनता की पराकाष्‍ठा नहीं है? वैसे सवाल तो यह भी उठता है कि ऐसे लोग क्‍या अपने देश में हो रही बर्बरता के खिलाफ आवाज़ उठाते हैं, क्‍या इनकी सोई हुई संवेदना गुज़रात नरसंहार जैसे मुद्दों पर भी जागती है? जवाब है नहीं, क्‍योंकि अंधराष्‍ट्रवादी विचारों ने इनकी मानवीय संवेदनाओं को बहुत गहरी नींद में सुला दिया है।

जो लोग इस बेहूदे तर्क की आड़ लेकर इस नरसंहार को न्‍याय-संगत ठहरा रहे हैं कि इज़रायल यह सबकुछ आत्‍मरक्षा में कर रहा है, उनसे बस यही कहा जा सकता है कि दक्षिणपंथी विचारों की आंधी में बहने की बजाय संजीदगी से एक बार फिलीस्‍तीनी समस्‍या के इतिहास पर भी नज़र दौड़ा ली जाये।

वर्तमान को समझने के लिए, किसी को अतीत के प्रति सचेत होना चाहिए। इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष तर्कसंगत रूप से आधुनिक समय के सबसे गहन और जटिल संघर्ष है। इसलिए, इस क्षेत्र में चल रही स्थिति को समझने के लिए, बाल्फोर घोषणा के संदर्भ में यह अपरिहार्य है। इस 67-शब्द वाले दस्तावेज़ में न केवल ऐतिहासिक महत्व है, बल्कि फिलिस्तीन और निर्वासन में रहने वाले हजारों फिलिस्तीनियों के जीवन को प्रभावित करने वाले दूरगामी परिणामों का कारण बन गया है, और आज तक ऐसा करना जारी है।

सबरा और शातिला नरसंहार

सबरा और शातिला नरसंहार को हुए 36 साल हो गए, लेकिन इसे आज भी नहीं भुलाया जा सका है। 1982 में लेबानानी मिलिशिया में 16 से 18 सितंबर के दौरान बेरूत में रह रहे शरणार्थी फलस्तीनियों का खून बहाया था। इस नरसंहार में साढ़े तीन हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे। इस घटना के लिए लेबनान की प्रमुख कताएब पार्टी से संबंध रखने वाली मिलिशिया और इजरायली सेना को जिम्मेदार ठहराया जाता है। लेबनान की मुख्य रूप इस दक्षिणपंथी ईसाई पार्टी को फ़लान्जिस्ट नाम से भी जाना जाता है।

ये लेबनान में 1982 में हुए इजरायली सेना के हमले के दौरान की घटना है। इजरायली सेना के इस हमले का मकसद फलस्तीन मुक्ति संगठन को जड़ से मिटाना था। इजरायली सेना के इशारे पर ही लेबनानी मिलिशिया ने बेरूत के दो शरणार्थी कैंपों सबरा और शातिला में तीन दिनों तक लोगों पर अत्याचार किए। कैंप की महिलाओं का रेप किया गया और लोगों को मौत के घाट उतारा गया। मरने वालों में ज्यादातर महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग थे। इनमें ज्यादातर फलस्तीनी और लेबनानी शिया थे।

इस नरसंहार को लेबनान के नव निर्वाचित राष्ट्रपति बचीर गेमायल की हत्या के बदले के तौर पर भी देखा जाता है, जो लेबनान की कताएब पार्टी से ही थे। इस नरसंहार के कुछ हफ्ते पहले ही उनकी और उनके 25 समर्थकों की बम धमाके में मौत हो गई थी। फलान्जिस्ट इस धमाके के पीछे फलस्तीनी विद्रोहियों का हाथ मानते थे। इसी के चलते फलस्तीनी शरणार्थियों के कैंप में इस कत्लेआम को अंजाम दिया गया।

1983 में इजरायली इन्वेस्टिगेशन कमीशन ने इजरायली नेताओं को इस नरसंहार के लिए अप्रत्यक्ष तौर पर जिम्मेदार ठहराया था। इनमें इजरायल के तत्कालीन रक्षा मंत्री एरियल शैरॉन भी शामिल थे, जिन्होंने बाद में इजरायल के पीएम का पद भी संभाला। कहा जाता है कि इन्हीं के निर्देश पर इस नरसंहार को अंजाम दिया गया था। कमीशन ने उन्हें नरसंहार को न रोक पाने के लिए निजी तौर पर जिम्मेदार बताया था।