बिगड़ती अर्थव्यवस्था और बेरोज़गारी के बीच अब मोदी सरकार सांप्रदायिकता को बढ़ावा दे सकती है: द इकॉनोमिस्ट

ब्रिटेन की प्रतिष्ठित साप्ताहिक पत्रिका ‘द इकॉनोमिस्ट’ ने  गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में उनकी भूमिका को याद करते हुए चिंता व्यक्त की है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत में सांप्रदायिक तनाव को बढ़ा कर अपनी लोकप्रियता को बनाए रखने की कोशिश करेंगे क्योंकि अर्थव्यवस्था में गिरावट शुरू हो गई है।

पत्रिका ने लिखा है कि मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो दंगा के दौरान कम से कम 1000 हजार लोग मारे गए थें इनमें ज्यादातर मुस्लिम थें। द इकॉनोमिस्ट ने लिखा कि भारत के ज्यादातर मीडिया घराने इन तथ्यों से बचते हैं।

पत्रिका ने लिखा है आज तक उन्होंने इस नरसंहार की निंदा नहीं की और न ही रक्षा करने में असफल होने को लेकर उन्होंने माफी मांगी। द इकॉनोमिस्ट ने ‘मोदीज यूएस विजिट’ से एक लेख छापा है जिसमें लिखा है भारत के प्रधानमंत्री उतने ज्यादा सुधारक नहीं जितना कहते हैं। साथ ही लिखा है वे इससे ज्यादा राष्ट्रवादी चेहरा है।

24 जून, 2017 के प्रकाशित अंक में साप्ताहिक ने लिखा है जब मोदी 2014 में प्रधानमंत्री बनें तो “लोगों की राय बंटे हुए थें कि वे हिंदुत्ववादी मुखौटे में आर्थिक सुधारक हैं या आर्थिक सुधारक के मुखौटे में एक हिंदुत्ववादी हैं।”

पत्रिका ने लिखा ‘पिछला तीन साल मामले को सुलझाने में ही लग गया…मोदी ने कई बार धार्मिक भावनाओं को बढ़ावा दिया, ध्यान देने की बात है कि भारत की सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में कट्टर हिंदू नेता को उन्होंने मुख्यमंत्री बनाया।’

साप्ताहिक के अनुसार जीएसटी, “यद्यपि सराहनीय है, अनावश्यक रूप से जटिल और नौकरशाही है, जो अपनी दक्षता को कम कर रहे हैं।” आगे लिखा है कि “नया दीवालियापन कानून सही दिशा में एक कदम है, लेकिन वित्तीय व्यवस्था को पुनर्जीवित करने में अधिक समय लगेगा। इस तंत्र पर राज्य के स्वामित्व वाली बैंकों का वर्चस्व है जिस पर व्यर्थ ऋणों का बोझ है।”

पत्रिका ने लिखा नोटबंदी की काफी निंदा हुई। इससे भ्रष्टाचारियों का कुछ नुकसान नहीं बल्कि उत्पादन और वैध व्यापार का काफी नुकसान है। कोई आश्चर्य नहीं कि अर्थव्यवस्था गिरने लगी है। साल के पहले तिमाही में 6.1 प्रतिशत दर्ज की गई। यह दर सबसे कम है जब से मोदी ने सत्ता हासिल की है।

साप्ताहिक के अनुसार ‘भारत के प्रधानमंत्री आमूल परिवर्तनवादी नहीं हैं जो इसे तोड़ना चाहते हैं। वे अपने साथ कोई नया विचार नहीं लाए हैं जैसे-जीएसटी और दीवालियापन सुधार काफी पुराना है।’ पत्रिका के मुताबिक मोदी की पहचान व्यवसाय-मित्र के रूप में है जो सहायता करने के लिए हर तरह के प्रयास करते हैं- विशेष उद्योग के लिए भूमि का आवंटन हो या ऊर्जा संयंत्रों के निर्माण। लेकिन वह अर्थव्यवस्था के सुधार के लिए समस्याओं को खत्म करने हेतू व्यवस्थित ढंग से काम करने में बेहतर नहीं हैं।

साप्ताहिक के अनुसार वास्तव में मोदी हिंदू कट्टरपंथियों और व्यवसायियों के समर्थक रहे हैं। उनकी सरकार ने बीफ-निर्यात व्यापार को लेकर उग्रता दिखाई और मवेशियों की खरीद-बिक्री का नया कानून बना दिया।

पत्रिका ने खासतौर से यूपी सरकार पर हमला बोलते हुए कहा है कि राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अन्य मामलों के अलावा धार्मिक अपराध और दंगों को उकसाने के लिए जांच के घेरे में हैं। आगे लिखा है मोदी स्वयं एक चापलूस व्यक्तित्व पंथ का उद्देश्य बन गए हैं। साप्ताहिक ने लिखा है मोदी के अधीन किस तरह ‘हिंदू राष्ट्रवादी ठग’ काम कर रहे हैं। ये उन लोगों को डराते हैं जो सरकार के खिलाफ बोलते हैं। हाल की घटना में एनडीटीवी पर हुई कार्रवाई को याद दिलाते हुए लिखा है जो सरकार की आलोचना करता है तो उसके यहां पुलिस के छापे पर जाते हैं।

साभार: सबरंग