“बोलो बोलो, तब क्या होगा”
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जब डरते डरते मुसमान वंदे मातरम गाएंगे
जब ईसाई धर्मांतरण बिलकुल ही थम जाएंगे
कम्युनिस्टों का जब नाम एकदम ही मिट जाएगा
जब हर कन्हैया हर उमर बुरी तरह पिट जाएगा
तब क्या होगा? बोलो बोलो, तब क्या होगा?
जब छत्तीसगढ़ का आदिवासी जंगल छोड़ जाएगा
और कमर कश्मीर की हर सैनिक तोड़ आएगा
हर बांग्लादेशी को जब हम दूर खदेड़ डालेंगे
पाकिस्तान की बखिया जब पूरी उधेड़ डालेंगे
जब कहीं भी गाय नहीं एक काटी जाएगी
लव जिहादी दुश्मन द्वारा धूल चाटी जाएगी
रामलला का जगमग मंदिर यूपी में बन जाएगा
और सुंदर सा भगवा परचम संसद पर तन जाएगा
मस्जिद मस्जिद रामजी की मूर्ति हो जाएगी
शंखनाद से हिंदू राष्ट्र की पूर्ति हो जाएगी
तब क्या होगा? बोलो बोलो, तब क्या होगा?
क्या धंधा-पानी पाने की युक्ति मिल जाएगी?
कमरतोड़ ग़ुरबत से क्या मुक्ति मिल जाएगी?
क्या गांवों में पानी से आर्सेनिक हट जाएगा?
डायरिया-मलेरिया का संकट छंट जाएगा?
बाढ़ नहीं आएगी? सूखा नहीं पड़ेगा क्या?
सड़क किनारे बेसहारा भूखा नहीं पड़ेगा क्या?
और कुपोषण? हवा में प्रदूषण? नदियों का गंदापन?
दहेज़? घरेलू हिंसा? जात-पाँत का अंधापन?
मज़दूर का शोषण? क़र्ज़ का कुचक्र? महंगाई?
भ्रष्टाचार में लुट गई कमाई की भरपाई?
अशिक्षा? टॉयलेट का ना होना? सूदख़ोरी?
किसान की ख़ुदकुशी? फ़र्ज़ी मुठभेड़? टैक्स की चोरी?
और जो बेइंतहा बेईमानी हमारी नस-नस में है?
क्या उससे निजात पाना हिंदुत्व के बस में है?
बोलो, भाई, कुछ तो बोलो.
- अजीत शाही की फेसबुक वॉल से साभार