गुजरात दंगों के दौरान मोदी को चुनौती देने वाले IPS अधिकारी ने लिखी किताब, किये कई सारे ख़ुलासे

गुजरात कैडर के सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी आर बी श्रीकुमार गुजरात दंगों (2002) के दौरान गुजरात इंटेलीजेंस के अतिरिक्त महानिदेशक थे। उन्होंने दंगा रोकने की भरपूर कोशिश की और दंगों के बाद अपराधियों को सजा दिलवाने के लिए भी उन्होंने बहुत कोशिश की और नानावती आयोग को कई विस्तृत बयान दिए, जिसके संदर्भ में गुजरात में मोदी सरकार ने उन्हें परेशान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

गोधरा रेलवे स्टेशन की दुर्घटना के बाद गुजरात के अनेक इलाक़ों में भड़कने वाले भीषण दंगे गुजरात तथा भारत के चेहरे पर कलंक हैं । इन भीषण दंगों का कारण पुलिस द्वारा क़ानून-व्यवस्था का पालन न करना था ।  इस पुस्तक में लेखक ने घटनास्थल पर उपस्थित एक उच्च पुलिस अधिकारी की हैसियत से दंगों और बाद में उन्हें छिपाने तथा अपराधियों को बचाने की सुसंगठित सरकारी कोशिशों का पर्दाफ़ाश किया है । दंगों के दौरान उनकी रिपोर्टें और बाद में दंगों की जाँच करने वाले जाँच आयोग के सामने उनके बयान राजनेताओं, पुलिस तथा नौकरशाहों की घिनौनी भूमिका का पर्दाफ़ाश करते हैं । उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित विशेष जाँच दल (एस.आई.टी.) के कार्य को उन्होंने निकट से देखा और इस निष्कर्ष तक पहुँचे कि एस.आई.टी. ने अपराधियों को उनके कुकृत्यों का दण्ड दिलाने के बजाय उनको बचाने वाले वकील के तौर पर काम किया । गुजरात के दंगे और बाद की परिस्थितियों के चश्मदीद गवाह ने यह पुस्तक अपनी अन्तरात्मा के बोझ को हल्का करने के लिए लिखी है

वही सरकार ने उनको छोटे पदों पर भेज दिया और हकदार होने के बावजूद प्रोमोशन नहीं किया गया। हालांकि बाद में उन्हें अदालत के माध्यम से अपना अधिकार प्राप्त हुआ।श्रीकुमार ने दंगों के दौरान बहुत करीब से देखी गई दास्तान विस्तृत रूप से अपनी अंग्रेजी किताब Gujarat Behind the Curtain में दर्ज की है। जो गुजरात दंगों पर प्रकाशित होने वाली अब तक की सबसे प्रामाणिक और अहम किताब है। इस किताब में दंगों के दौरान सरकार के रवये पर लेखक ने परत दर परत कई ख़ुलासे किये हैं।

कुछ खास कारणों की वजह से किताब का अंग्रेजी संस्करण को दबा दिया गया था और चर्चा में नहीं रहा। अब दिल्ली के प्रसिद्ध प्रकाशक फारोस मीडिया ने इसका उर्दू और हिंदी दोनों अनुवाद प्रकाशित किया है और जल्द ही गुजराती अनुवाद भी प्रकाशित करने वाला है ताकि यह प्रामाणिक दस्तावेज जो गुजरात दंगों के दौरान दंगे भड़काने और बाद में अपराधियों को बचाने की दास्तान है, जनता तक पहुंच सके। उर्दू और हिंदी दोनों संस्करण छप गये हैं और प्रत्येक की कीमत सिर्फ 250 रुपये है। फारोस मीडिया जल्द ही इस किताब का अंग्रेजी संस्करण भी छापने की योजना बना रही है। ये किताब अमोज़न सहित प्रकाशक की वेबसाइट पर भी उपलब्ध है । आप इस किताब को निचे दिए गए लिंक पर क्लीक कर ख़रीद सकते हैं ।

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