जम्मू-कश्मीर पुलिस की एक रिपोर्ट ने मेजर लीतुल गोगोई के उन दावों पर सवाल खड़े कर दिए हैं, जिसमें उन्होंने कहा था कि सेना ने अपने बचाव के लिए एक पत्थरबाज़ कश्मीरी युवक फारूक अहमद डार को जीप से बांधा था।
रिपोर्ट ने फारूक अहमद डार को पत्थरबाज़ों से अलग करते हुए यह स्पष्ट किया है कि 9 अप्रैल को पास के गांव में शोक सभा में शिरकत करने से पहले डार लोकसभा उपचुनाव के लिए वोट डालने गया था। रिपोर्ट में मेजर गोगोई की निर्दोष नागरिक के ख़िलाफ की गई कार्रवाई को ग़लत बताया गया है।
दो पन्नों की रिपोर्ट के मुताबिक, जांच के दौरान यह पता चला कि 9 अप्रैल को बीरवाह थाना इलाके में उप-चुनाव के दौरान कई पत्थरबाज़ी की घटनाएं हुईं और उसी दिन कहा गया कि फारूक अहमद डार अपने साथी हिलाल अहमद मैग्रे के साथ शोक सभा में शिरकत के लिए गैम्पोरा गांव पहुंचे और वहां कुछ समय बिताने के बाद डार उतलीगाम क्रॉसिंग पहुंचे जहां से पत्थरबाज़ी के दौरान सेना ने उसे उठा लिया और जीप के बोनट से बांध कर मानव ढाल के रूप में इस्तेमाल किया।”
रिपोर्ट में आगे कहा गया कि डार को ग़लत तरीके से जेल में रखा गया और जीप के बोनट से बांधकर पूरे इलाके में घुमाया गया।
हालिया रिपोर्ट के सामने आने के बाद अब यह सवाल उठने लगे हैं कि क्या मेनस्ट्रीम मीडिया द्वारा मेजर गोगोई को इस अमानवीय कार्रवाई के लिए हीरो बनाया जाना सही था?