राजनीति बीमार है, तो उससे कहीं अधिक बीमार भारतीय मीडिया है

राजनीति बीमार है तो उससे कहीं अधिक बीमार भारतीय मीडिया है। मौजूदा हालात में यह कहना मुश्किल होगा कि दोनों में ज्यादा बीमार कौन है? राजनीति नफरत का एक मोहरा चलती है तो मीडिया दो क़दम आगे बढ़ कर नफरत और भड़कीले बयानों की हदों से आगे बढ़ जाता है।

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टीवी न्यूज़ चैनल हिन्दू मुस्लिम विवादों को न सिर्फ हवा देती दे रहे हैं बल्कि आरएसएस के छत्र छाया में उनकी जुरअत इस हद तक बढ़ गई है कि मुसलमानों पर हमले के बाद अब वह इस्लाम धर्म का अपना निशाना बना रहे हैं। यह खेल 70 सालों की हिन्दुस्तानी राजनीति में कभी नहीं हुआ।

कांग्रेस की सरकार में साम्प्रदायिक दंगे तो काफी हुए, लेकिन भारतीय राजनीति आज की तरह नैतिक गिरावट की नाज़ुक पायदान पर कभी नहीं आई थी। बल्कि अब तो ऐसा लगता है कि अगर 2019 में भाजपा की सरकार चली भी गई तो और कोई दूसरी सरकार आ भी गई तो जनता को ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा। साम्प्रदायिकता की आंधी थम भी गई तो भारतीय जनता के नैतिक गुणवत्ता को बहाल होने में आधी शताब्दी गुजर जाएगी।

उसूल, कायदे कानून और इंसानी नैतिकता की धज्जियां जिस बेरहमी से इन चारों में अड़ी हैं। इससे पहले कभी ऐसे मंजर नहीं देखे गए। अदालतें डरी हुई हैं, ज्यादातर मीडिया या तो बिक चूका है या मजबूर है। सत्ता के बचाव की खातिर हर हद से गुजर जाने के फैसले से सिर्फ राजनीतिक वयवस्था प्रभावित नहीं होगा बल्कि उसके भयानक प्रभाव इंसानी नैतिकता, मानसिकता, संस्कृति, समाज, धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र को भी पुर्जा पुर्जा कर देंगे।

तबस्सुम फ़ातिमा: