केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद एक तरफ जहाँ देश भर के प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थानों पर लगातार हमला किया जा रहा है, वहीँ दूसरी तरफ अब गुजरात में शिक्षा का अधिकार के तहत राज्य की स्कूलों में दाखिला नहीं किया जा रहा है।
इस बात का खुलासा होने के बाद आरटीई के तहत बच्चों को उसके मौलिक अधिकार से वंचित रखने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई गई थी।
जिस पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस जेएस खेहर और जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की खंडपीठ ने गुजरात सरकार से जवाब मांगा है।
इस याचिका में मांग की गई थी कि कमजोर तबके के 63,610 छात्रों का दाखिला पहली कक्षा में तीस दिनों के भीतर किया जाए।
याचिका में आरोप लगाया गया है कि गुजरात सरकार अपनी प्राइमरी शिक्षा की वेबसाइट पर कक्षा एक की सीटों की संख्या के बारे में जानकारी दबा रही है या इसमें हेराफेरी कर रही है। नतीजतन कमजोर वर्गो के छात्रों का पंजीकरण प्रभावित हो रहा है।
हालाँकि अब कोर्ट ने गुजरात सरकार और उसके प्राइमरी शिक्षा निदेशालय को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया। यह याचिका संदीप हर्षाद्रे मंज्यासरा ने वकील सत्य मित्र द्वारा दायर की है।
इस मामले में याचिकाकर्ता के वरिष्ठ वकील कोलिन गोन्साल्विज ने कहा कि यह मुद्दा बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार कानून 2009 के प्रावधानों में रूकावाट पैदा कर रहा है।
सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में आरोप लगाया गया है कि स्कूलों की मिलीभगत से सरकार शिक्षा के अधिकार कानून के प्रावधानों का उल्लंघन करके वास्तविक पंजीकरण का विवरण छिपा रही है।
याचिका में राज्य सरकार के खिलाफ आरोप लगाया गया है कि गुजरात में करीब 9 हजार से ज्यादा स्कूलों की क्षमता को छिपाया जा रहा है। यहां के स्कूल कमजोर तबके के छात्रों के लिए आरटीई के तहत अनिवार्य 25 प्रतिशत के नियमों को नजरअंदाज कर रही है।
याचिका द्वारा 2014-15, 2015-16 और 2017-18 के दौरान स्कूलों में आरटीई कोटा के तहत दाखिले का आंकड़ा मांगा गया है। याचिका में यह भी कहा गया है कि राज्य के करीब 1,000 से ज्यादा स्कूल अपनी क्षमता शून्य दिखाए हैं।