सत्ता के खेल निराले, जीतकर भी भाजपा पीछे, हारने वाले बने सूरमा

कर्नाटक के विधानसभा चुनावों में पल पल बदलते समीकरण के बाद अब राजनीतिक दलों के साथ आम जनता की भी बेचैनी बढ़ गई है। दोपहर तक एकतरफा बहुमत के साथ राज्य में सत्ता बनाती दिख रही भाजपा अब बहुमत से काफी दूर है। वहीं नंबर दो और तीन पार्टियां सरकार बनाने की तैयारी में जुटी हैं।

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राजनीतिक हलकों में चल रही खबरों की मानें तो भाजपा को सत्ता में आने से रोकने के लिए कांग्रेस और जनता दल एस ने हाथ मिला लिया है। यहां तक की सरकार चलाने के समीकरण भी तय हो चुके हैं, ऐसे में भाजपा में जबरदस्त बौखलाहट है। पार्टी के मुख्यमंत्री उम्मीगदवार बीएस येदियुरप्पा ने प्रेस कान्फ्रेंस कर कांग्रेस पर सत्ता हासिल करने के लिए अनैतिक तरीके इस्तेमाल करने का आरोप लगाया, हालांकि वह खुद यह भूल गए कि खुद उनकी पार्टी का दामन ऐसे कई मामलों में दागदार है।

वैसे भी यह पहली बार नहीं है कि सबसे ज्यादा सीट पाने वाली पार्टी जीतकर भी सत्ता पाने से वंचित रह गई और दूसरे दलों ने मिलकर सरकार बना ली। आइए डालते हैं कुछ ऐसे ही मामलों पर एक नजर।

जब सबसे ज्यादा सीट जीतकर भी सरकार नहीं बना सके थे मुलायम
हालिया दौर में ऐसा सबसे बड़ा मामला उत्तर प्रदेश का है, जहां साल 2002 के विधानसभा चुनावों में मुलायम सिंह के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी ने सबसे ज्यादा 143 सीटें जीती थीं ले‌किन वह बहुमत के आंकड़े 202 से काफी पीछे रह गई थी, नतीजन 98 सीटों वाली मायावती ने भाजपा के 88 विधायकों के साथ मिलकर सरकार बना ली थी। उस समय मुलायम सिंह ने इस गठबंधन को लोकतंत्र की हत्या करार दिया था।

दिल्ली् में भाजपा को पटखनी दे आप-कांग्रेस ने बनाई सरकार
साल 2013 में देश की राजधानी दिल्लीी में पहली बार चुनाव में उतरी आम आदमी पार्टी ने चमत्कार करते हुए 28 सीट जीतकर कांग्रेस के साथ सरकार बना ली थी। हालांकि 70 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा 31 सीटों के सा‌थ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में सामने आई थी लेकिन बहुमत न होने के कारण पार्टी सरकार बनाने के लिए दावा पेश नहीं कर सकी और पहली बार चुनाव में उतरे केजरीवाल ने कांग्रेस के समर्थन से सरकार बना ली।

झारखंड में जब एक निर्दलीय बन गया था राज्य का मुख्यमंत्री
झारखंड में साल 2005 के विधानसभा चुनावों ने देश में एक नई राजनीतिक इबारत लिखी। राज्य में 81 सीटों के लिए विधानसभा चुनावों में 30 सीट जीतकर भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। शिबु सोरेन के झामुमो को 17 और कांग्रेस को मात्र 9 सीटें मिलीं। भाजपा के अर्जुन मुंडा ने कुछ दूसरे दलों और निर्दलीयों को लेकर राज्य में गठबंधन सरकार बनाई। लेकिन सालभर
बाद ही निर्दलीय विधायक मधु कोडा ने सरकार से समर्थन वापिस ले लिया और उसके बाद जो हुआ वो देश की राजनीति में इतिहास बन गया। किस्मत की बाजीगरी में निर्दलीय विधायक मधु कोडा ही राज्य के मुख्यमंत्री चुन लिए गए और उन्होंने झामुमो, कांग्रेस, राजद सहित छह दलों के समर्थन से गठबंधन सरकार बनाई।

कर्नाटक में पहले भी नंबर दो होकर सरकार बना चुकी है कांग्रेस
अगर बात कर्नाटक की ही करें तो वहां पहली बार ऐसा नहीं हो रहा है कि बहुमत में आने वाली पार्टी सरकार बनाने से चूकती दिख रही है। साल 2004 में भी राज्य की जनता कुछ ऐसा ही खेल देख चुकी है। जब 2004 में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा सबसे ज्यादा 79 सीटें जीतकर भी पार्टी बनाने से वंचित रह गई ‌थी, जबकि 65 सीट जीतने वाली नंबर दो पार्टी कांग्रेस ने
जनता दल एस के 58 विधायकों के साथ मिलकर सरकार बना ली थी। उस समय कांग्रेस के धर्म सिंह मुख्यमंत्री चुने गए थे, जबकि इस बार नंबर तीन वाली पार्टी का मुख्यमंत्री बनता दिख रहा है।

बिहार में राजद सबसे बड़ी पार्टी सरकार नीतीश भाजपा की
साल 2015 में हुए बिहार विधानसभा चुनावों में भी राजनीति की अजीब कहानी लिखी गई। भाजपा के एनडीए से मुकाबले के लिए लालू यादव ने नीतीश कुमार और कांग्रेस के साथ मिलकर महागठबंधन की रूपरेखा तैयार की। तमाम आरोप प्रत्यारोपों के बीच हुए चुनाव में लाख प्रयास के बाद भी प्रधानमंत्री मोदी महागठबंधन को जीत हासिल करने से नहीं रोक सके। चुनाव परिणाम आए तो लालू यादव की राष्ट्रीय जनता दल 80 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी जबकि नीतीश कुमार की जेडीयू ने 71 सीटें हासिल कीं। वहीं भाजपा को मात्र 53 सीटें ही मिल सकीं। पूर्व वादे के अनुसार लालू यादव ने नीतीश कुमार को ही मुख्यमंत्री बनने का मौका दिया। लेकिन ये गठबंधन कुछ ज्यादा दिन नहीं चल सका और नीतीश कुमार ने लालू का हाथ झटककर भाजपा का दामन थाम लिया। जिसके बाद भाजपा के समर्थन से उन्होंने अपनी सरकार बरकरार रखी।

गोवा और मणिपुर में भी भाजपा ने किया यही कारनामा
कर्नाटक में सबसे बड़ी पार्टी होने के बाद भी भाजपा को जिस स्थिति का सामना करना पड़ रहा है, उसकी पटकथा खुद उसने ही गोवा और मणिपुर के विधानसभा चुनावों में लिखी थी। साल 2017 में गोवा में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को सबसे ज्यादा 17 सीटें मिली थीं और वो बहुमत से मात्र 4 सीट कम रह गई थी, इसी का फायदा उठाकर 13 सीटों वाली भाजपा ने अन्य दलों के साथ मिलकर राज्य में अपनी सरकार बना ली। कांग्रेस का यही हाल मणिपुर में हुआ जहां 60 सदस्यीय विधानसभा में 28 सीट पाकर वह सबसे बड़ी पार्टी बनी, लेकिन सरकार बनाने से वंचित रह गई। वहीं 21 सीट वाली भाजपा ने विपक्षी दलों का साथ लेते हुए अपनी सरकार बना ली।

साभार- वन इंडिया