प्रधानमंत्री जी क्या अब बेटियां भी सिर्फ राजनीतिक मुद्दा बनकर रह गई हैं?

बेटी बचाओ.. बेटी पढ़ाओं आदरणीय प्रधान सेवक ने जो नारा दिया या बेटियों को बचाने और आगे बढ़ने की मुहीम शुरू की वो काफी सफल होती दिखाई दी । इसके लिए प्रधानमंत्री जी को बहुत बहुत बधाई ।  बेटियां बच भी गई और पढ़ने गयी, वहां लफंगों के द्वारा छेड़ी भी गई, और जब सहने की शक्ति ख़त्म हो गई तब इस छेड़खानी और अपमान के खिलाफ बड़ी बहादुरी से आवाज़ भी उठाई । तो वही मासूम बेटियां बड़ी ही बर्बरता के साथ विश्वविद्यालय में ही सरेआम लाठियों से पीटी भी गई । और ये पिटाई अपने आप बरसों पुरानी बात कह जाती हैं कि इस पुरुष समाज में तुम्हे पढ़ने भेज दिया तो चुप-चाप पढ़लो वरना जाकर घर बैठों।

 

अभी ज़्यादा दिन नहीं हुए हैं तुम्हे जीने का हक़ मिले हुए, फिर पढ़ने भी भेज दिया तो अब आंदोलन पर उतर आओगी सो कॉल्ड पुरुषों के खिलाफ।  तुम लड़की हो तुम्हारा छेड़ा जाना लाज़मी हैं । ये बात उस लड़की के सर पर पड़ी आखिरी लाठी ने बड़े ही प्यार से समझा दी,कि ये आखिरी आदेश हैं इस समाज में जीने का । अगली बार लाठी कि जगह गोलियां होंगी ।

 

जी हां आप बिलकुल सही समझ रहे हैं मैं बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी की ही बात कर रहा हूँ जहां ये सबसे निंदनीय कृत्या हुआ ।  बनारस में आज पहली बार बेटियों ने खुद को छेड़खानी से बचाने के लिए गुहार लगाईं।  आदरणीय महात्मा गांधी और मालवीय जी के आदर्शों का पालन करते हुए अहिंसात्मक प्रदर्शन भी किया पर बदले में मिली सरकारी डंडों की मार ।  देश के प्रधानमंत्री और काशी के सांसद मोदी जी से भी बार बार गुहार लगाईं की सेल्फी विथ डॉटर की प्रथा को आगे बढ़ाने वाले प्रधान सेवक उनकी समस्या का कोई समाधान करे।  पर उनके पास वक़्त कहा था देश की बेटियों को सुनने का । उन्हें तो बनारस में आकर देश को अपनी उपलब्धियां गिनवानी थी भाषण देने के लिए देर हो रही थी इसलिए अपने काफिले का रास्ता ही बदलवा दिया, और मासूम बेटियों की उम्मीदों पर पानी फिर गया ।

 

फिर उन्हें एहसास हुआ की जिससे इन्होने उम्मीदें पाल रखी थी आखिर वो भी एक आम नेता की तरह निकले ।और उसके बाद उसी लंका चौराहे BHU गेट पर मदन मोहन मालवीय जी की मूर्ति के सामने देश की मासूम बेटियों को दौड़ा दौड़ा कर पीटा गया । आदरणीय प्रधानमंत्री जी इस घटना ने आपके और ‘मन की बात’ के ऊपर एक प्रश्नचिन्ह लगा दिया । सवाल उठा दिया आपके सेल्फी विथ डॉटर की मुहीम के ऊपर की क्या वो सब बातें भी अपने राजनीतिक प्रभाव को बढ़ाने के उद्देश्य से की गई थी ।

 

आप बनारस में थे, मानस मंदिर में जाकर पूजा करने का वक़्त था तो आप BHU भी जाकर अपने देश की बेटियों को हिम्मत दे सकते थे और ये सन्देश देते की हिंदुस्तान का वो चायवाला प्रधानमंत्री आज भी अपने देश की बेटियों के साथ खड़ा हैं तो पूरा हिंदुस्तान आप पर फक्र महसूस कर रहा होता ।  पर आपका यूँ रास्ता बदल कर निकल जाना आपके दोहरे चरित्र का समर्थन करता हैं कि आपके बोलने और करने में ज़मीन आसमान का फ़र्क़ हैं । चलिए अगर अब आप नहीं जा सकते थे तो काम से काम 5 मिनट के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री जी को ही भेज देते जो पूरे वक़्त अपने मंत्रियों के साथ आपका गुणगान करने में लगे रहे ।

 

ये वही योगी जी हैं जिन्होंने बेटियों की सुरक्षा के लिए बड़े वादे किये रोमियो स्क्वायड तक का गठन किया ।  पर कहावत हैं ना चार दिन की चाँदनी फिर अँधेरी रात,  जब उन छात्रों ने अपने ज़ुल्मो सितम की कहानी सुनानी चाही तो आपकी सरकारी लाठी उन्हीं बेगुनाहों पर बरसी क्योंकि आपकी पुलिस तो गुनहगारों को पकड़ने के लिए काम करना पड़ेगा ना । और आपकी पास तो सिर्फ अभी एक ही काम हैं पुरानी सरकारों की बुराई करने का ।

 

हम नहीं सुनना चाहते की ७० साल से क्या नहीं हुआ देश में ।  हम नहीं सुनना चाहते की आप क्या करेंगे बस हम देखना चाहते हैं कि आपने क्या कर दिया हैं, और आपने दिखा दिया की आप और आपकी पुलिस सिर्फ कमज़ोरों को डंडे मार सकती हैं ।  और सरकार महंगाई और टैक्स लगाकर मानसिक रूप से मार रहे हैं ।  मैं भी कहा की बात लेकर बैठ गया, इसपे किसी दिन फुर्सत में बातें होंगी पर अभी उस बर्बरता की बात करनी है जो आपकी सरकार ने पूरे प्रदेश की बेटियों को दिखा दी हैं कि ज़बरदस्ती मानो तुम सब सुरक्षित हो अगर असुरक्षा के खिलाफ आवाज़ उठाई तो ऐसे ही सुताई होगी ।

 

खैर छोड़िये अब क्या बोलू इस घटना पर तो पूरा देश दुखी हैं. बड़े दुःख के साथ कहना पड़ रहा हैं की इस घटना ने देश के प्रधानमंत्री, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री जो की उस वक़्त बनारस में मौजूद थे उनकी मौजूदगी में ये वाक़्या हुआ इससे आप सब पर एक प्रश्नचिन्ह लगा दिया हैं की क्या बेटियों की सुरक्षा पर सिर्फ भाषण में ही बाते करना पसंद हैं । आखिरी में एक सवाल ,कि क्या अब बेटियां भी सिर्फ राजनीतिक मुद्द्दा बनकर रह गई हैं? जवाब दीजिये देश आपसे कुछ पूछ रहा हैं ।

 

(लेखक- प्रशांत तिवारी, टीवी पत्रकार)