आगरा में बहादुरी के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार हासिल करने वाले नौजवान सिस्टम की मर की वजह से मजदूर बन गया है। यमुना में डूबता हुए दो लोगों जिंदगी बचाने वाला शहंशाह आज दूसरों के जुते सिलकर अपने परिवार का पेट भरने पर मजबूर हैं। 2009 में शहंशाह को उस वक्त की राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने पुरस्कार से पुरस्कृत किया था और दिल्ली से लेकर आगरा तक शहंशाह की बहादुरी को सलाम किया गया था।
लेकिन झूठी आश्वासन की बुनियाद पर किये गये वादों से शहंशाह के सपने बिखर गये। फीस न होने के कारन से उनकी शिक्षा छुट गई और आगरा का शहंशाह एक मजदुर बन गया।
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शहंशाह का कहना है कि मेडल तो मिला लेकिन इज्जत नहीं मिली। यह मेडल मेरे लिए किसी कौड़ी की तरह ही है। क्योंकि जो जिंदगी पहले जी रहा था आज भी वही है। अब तो पढाई भी छुट चुकी है। घर का खर्च चलाने के लिए जूते के एक फैक्टरी में मजदूरी कर रहा हूँ।
उधर शहंशाह के पिता का कहना है कि आठ-नौ वर्षों से अधिकारियों के चक्कर लगाते लगाते थक गये हैं। कुछ भी नहीं हुआ।बेटे की शिक्षा भी छुट गई। नौकरी भी नहीं मिली। उनहोंने बताया कि इसके लिए डीएम से भी मिले लेकिन कहीं कुछ नहीं हुआ।
बता दें कि 10 साल पहले यमुना के तेज बहाव में महज ग्यारह वर्ष की उम्र में अपनी जान पर खेल कर शहंशाह ने दो नौजवानों की जिंदगी बचाई थी। उस वक्त शहंशाह की बहादुरी के बाद जिला प्रशासन लगातार उनके भविष्य को सँवारने की वादा करती रही। लेकिन सरकारी सिस्टम की मार शहंशाह पर ऐसी पड़ी कि परिवार ही टूट गया। अब हालत यह है कि छोटे छोटे दो तिन शेड में शहंशाह का परिवार गुजर बशर कर रहा है।
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