तीन तलाक पर प्रधानमंत्री राजनीति कर रहे हैं जबकि हिंदुओं में मुसलमानों से अधिक तलाक होते है: अरशद मदनी

सुप्राम कोर्ट में तीन तलाक को लेकर आज सुनवाई शुरू हो रही है। लेकिन इसी बाच जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना सैयद अरशद मदनी ने मुस्लिमों के धार्मिक मामलों में न्यायिक हस्तक्षेप का विरोध किया है। उन्होंने तीन तलाक जैसे मुद्दों को अदालत से बाहर सुलझाने की बात कही है।

उन्होंने कहा कि तीन तलाक मुद्दे का समाधान अदालत के बाहर ही किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर कानूनी हस्तक्षेप की बजाए इस्लामिक धर्मगुरुओं के बीच बहस के जरिए हल निकालना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि अदालत को धर्मगुरुओं के सामने तीन तलाक के मुद्दे पर अपनी आपत्ति रखनी चाहिए और उन्हीं से इस विवादित मुद्दे का हाल निकालने के लिए कहना चाहिए।

मौलाना मदनी ने कहा कि अदालत को तीन तलाक के कुछ बिंदुओं पर आपत्ति हो सकती है जिसका समाधान उलेमाओं से निकालवाना चाहिए। उन्होंने दलील देते हुए कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट बाबरी मस्जिद मामले में आपसी सहमती से अदालत के बाहर समाधान निकालने की बात कह सकता है तो इस मुद्दे पर उलेमा समाधान क्यों नहीं निकाल सकते।

मदनी ने यह भी कहा कि अगर कोर्ट के बाहर समाधान निकल पाता है तो अच्छा है नहीं तो अदालत के दरवाजे तो हमेशा ही खुले हैं। उन्होंने इस मुद्दे पर राजनीति न करने की अपील की। उन्होंने कहा कि उन्हें प्रधानमंत्री की उस बात से आश्चर्य हुआ जिसमें उन्होंने कहा था कि मुस्लिम महिलाओं को न्याय नहीं मिल रहा है। प्रधानमंत्री खुद इस मुद्दे का राजनीतिकरण कर रहे हैं।

उन्होंने एक सर्वे का हवाला देते हुए कहा कि देश में मुस्लिमों की तुलना में हिंदुओं में अधिक तलाक होता है। उन्होंने सवाल उठाया कि भारत में मुस्लिम एक हजार से भी अधिक साल रह रहे हैं। क्या इतने लंबे समय से मुस्लिम महिलाओं का उत्पीड़न हो रहा है?

उन्होंने कहा, “इससे पहले भी लोग महिला अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठा चुके हैं। लेकिन आज ऐसी छवि बनाई जा रही है, जैसे हर मुस्लिम पुरुष अपनी पत्नी को तलाक देता है। जानबूझ मुस्लिमों की छवि खराब की जा रही है। हजार विवाह संबंधों में किसी एक में तलाक होता है। लेकिन मुस्लिम समाज में तलाक एकतरफा नहीं होता, बल्कि महिला अपनी मर्जी से तलाक ले सके, इसका भी प्रावधान है।”