क्या कपड़े ही हैं मेरी पहचान ?

 

आज मैंने सोशल मीडिया पर किसी का यौन शोषण , छेडछाड के लिए लडकियों के छोटे कपङो को कसूरवार ठहराने वाला पोस्ट देदेखा । उनके मन में कई सवाल थे उनके अनुसार छोटे कपङो से लङकियां पुरुषों को अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश करती है । ओर कोई उन्हें देखे तो सोच बदलने को कहती है ।

 

वो सब पढकर लगा शायद हो सकता है ये जो बोल रहे हैं वो सही हो ।लेकिन फिर अगर ऐसा है तो क्या सूट सलवार वाली लङकी का रेप क्यों होता है । वो बेचारी तो किसी को आकर्षित नहीं कर रही थी ।अब हो सकता है वो कहे हो सकता है आकर्षित कर रही हो। लेकिन हालही में एक बाप के अपनी ही 10 साल की बेटी का यौन शोषण करने की खबर आई । क्या वो दस साल की लङकी भी आकर्षित जानती थी । या फिर उस बेचारी को छोटे और बङे कपङो का फर्क पता नहीं था ।

पोस्ट में संस्कृति सभ्यता में ऐसे कपङे पहनें को गलत कहा गया । लेकिन ऐसी कौन सी किताब में लिखा है कि कोई अपनी इच्छा अनुसार कपङे नहीं पहन सकता । लोग ये क्यों भूल जाते हैं कि महाभारत में जब द्रोपदी का चिरहरण हुआ था तब सभा में बैंठे हर एक को निर्वस्त्र होना पङा था । जब किकिसी महिला के साथ गलत होता है तो वो इस बात का सबूत नहीं होता कि नारी कमजोर है उसे बंधन में रहने की जरुरत है बल्कि इस बात का इशारा हैं कि अब विनाश करीब हैं ।

 

आपको शायद जानकर हैरानी होगी कि शहरों के मुकाबले गांवों देहात में ज्यादा यौन शीषण के अपराध होते हैं लेकिन शिक्षा के अभाव के कारण और अपने अधिकारों की जानकारी न होने के कारण लोग केस दर्ज नहीं करवाते।लेकिन क्या आप लोगों को अभी भी लगता है कि यौन शोषण के अपराधों के लिए लङकियो के कपङे जिम्मेदार होते हैं ।

 

प्रीति राजपूत