मुस्लिम आबादी से दूर चूने वाली मस्जिद में जिंदा है ‘पंच वक्ता’ नमाज़ की रिवायत

नई दिल्ली: देश बंटवारे से पहले भारत का शायद ही कोई ऐसा हिस्सा रहा होगा कि जहाँ दीने इस्लाम के चाहने वालों ने अल्ल्हू अकबर की आवाज़ न उठाई हो। उनकी मौजूदगी का एहसास हर दौर में कायम उन मस्जिदों से होता है तो आज आस पास मुस्लिम आबादी नहीं होने के बाद भी वीरान आँखों से अपने आबाद करने वाले नमाजियों की राहें तक रही हैं।

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हालाँकि बहुत से स्थानों पर मस्जिदों को गैर मुस्लिमों से हासिल भी किया गया है मगर बहुत से इलाकों में आज भी कुछ एसी स्थिति बनी हुई है। बहुत ही कम मस्जिदें इस तरह की हैं जो बंटवारे के बाद किसी तरह मुसलमानों के कब्जे में आई हो। इस मामले में दिल्ली की बरबादी सब पर छुपी हुई हैं कि यहाँ की मस्जिदों में किसी तरह लोगों ने अपने घरों का सामान रख लिया, कहीं होटल तो कहीं लकड़ी टाल बना दी गई।

दिल्ली के पहाड़गंज तो इस बात का गवाह है कि जहाँ की बहुत सी मस्जिदों में लोगों ने होटल बना लिए और आज तक वह अल्लाहु अकबर को तरस रही हैं। मगर यहाँ एक मस्जिद एसी भी है जो बंटवारे के कुछ साल बाद तक तो नमाज़ के हवाले से वीरान रही मगर 1962 से जो उसमें नमाज़ शुरू हुई थी जो आज तक कायम।

गौरतलब है कि मस्जिद के आस पास तो क्या दूर दूर तक मुस्लिम आबादी नहीं है मगर नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के सामने बसंत रोड स्थित दाल मंडी चौक के पास कायम यह मस्जिद जो चूने वाली मस्जिद के नाम से मशहूर है में नमाज़ का एहतमाम जारी रखने के लिए यहाँ मौजूद मोहम्मद आसिफ अपनी सैलरी में से पैसे निकाल कर उसमें लगते चले आए हैं।