बेगुनाह मुसलमानों को जेल भेजने वाले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई हो: माकपा

नई दिल्ली। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई-एम) ने दिल्ली पुलिस के अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है जिन्होंने साल 2005 में हुए एक आतंकवादी हमले में इन दोनों मुस्लिम को फंसाया था। यह दोनों 12 साल के लंबे अंतराल के बाद अदालत से बेगुनाह साबित होने के बाद घर लौटे हैं। इस मामले में दोषी पुलिस अधिकारियों पर मुकदमा चलाया जाना चाहिए।
पार्टी की पत्रिका ‘पीपुल्स डेमोक्रेसी’ में संपादकीय में कहा गया है कि राज्य पर्याप्त मुआवजा प्रदान करते हैं लेकिन इन दो लोगों के साथ नाइंसाफी हुई है। इनके पुनर्वास के लिए भी कदम उठाने चाहिए। इसमें कहा गया है आतंकवाद से संबंधित मामलों में मुस्लिम युवकों फंसाने का घिनौना और चौंकाने वाला रिकॉर्ड एक बार फिर सामने है। साल 2005 में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों के आरोपियों को दिल्ली उच्च न्यायालय ने बरी कर दिया है।
न्यायालय ने मोहम्मद हुसैन फाजली और मोहम्मद रफीक शाह सभी आरोपों से बरी कर दिया गया था जबकि तारिक अहमद दर की धमाकों में कोई भूमिका नहीं पाई गई लेकिन उसको एक आतंकवादी संगठन का सदस्य होने के लिए दोषी पाया गया था। संपादकीय में कहा गया है कि इन दोनों को बेगुनाह होते हुए भी पुलिस यातना और 12 साल तक जेल में रहना पड़ा।

अदालत के फैसले से साफ़ हो गया कि यह दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल का गढ़ा हुआ अभियोग था। न्यायालय के फैसले से साफ़ होता है कि विस्फोट आदि आतंकी घटना होने पर पुलिस कैसे निर्दोष मुस्लिम युवकों को फंसा देती है जो नमूना है। माकपा ने ऐसे मामलों में मुआवजा और पुनर्वास की मांग रखते हुए विशेष अदालतों में एक साल के भीतर इनको निपटाने की बात रखी है।